मंजु मिश्रा
मै जननी जन्भूमि !
ना जाने कब से
ढूँढ रही हूँ
अपने हिस्से की
रोशनी का टुकड़ा....
लेकिन पता नहीं क्यो
ये अँधेरे इतने गहरे हैं
कि फ़िर फ़िर टकरा जाती हूँ
अंधी गुफा की दीवारों से...
बाहर निकल ही नहीं पाती
इन जंज़ीरों से,
जिसमे मुझे जकड़ कर रखा है
मेरे ही अपनों ने
उन अपनों ने
जिनके पूर्वजों ने
जान की बाज़ी लगा दी थी
मेरी आत्मा को
मुक्त कराने के लिए,
हँसते -हँसते
शहीद हो गये थे
एक वो थे
जिनके लिए देश सब कुछ था
देश की आज़ादी सबसे बड़ी थी
एक ये हैं
जिनके लिए देश कुछ भी नहीं
बस अपनी सम्पन्नता और
संप्रभुता ही सबसे बड़ी है
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