पथ के साथी

Wednesday, August 4, 2021

1123-मिलेंगे जल्दी ही

 

सोनिया शर्मा रिक्खी

 

जाने ना जाने करोना क्या- क्या दिखा गया

सोशल साइंस टीचर को सोशल डिस्टेंसिंग सिखा गया


क्या कहने उस कप्तान के

जिसने मुश्किल समय में सँभाली है

आन- बान- शान से

शिक्षा रूपी नाव की कमान

ऐसे शिक्षाविदों को मेरा प्रणाम

न जाने करोना क्या -क्या सिखा गया

क्या कहने उन अध्यापकों के सीख रहे हैं नए-नए गुर पढ़ाने के

अपने विद्यार्थियों की समस्याएँ सुलझाने के

नए तरीकों से समझाने के

ऐसे शिक्षकों को मेरा प्रणाम

कि स्कूल में कदम रखते ही

हँसते चेहरों को देखने और मुँह पर भोली मुस्कान-

कहते थे गुड मॉर्निंग ,सुनने को तरसते कान

आती है याद तुम्हारी बच्चो ,प्यारी मुस्कान !

दूर से ही सही ऑनलाइन टीचिंग से

तुमसे संपर्क बढ़ाने को

तुम तक पहुँच जाने को

करती हूँ मैं कोशिशें हजार

मिलेंगे जल्दी ही करते रहो

तुम करोना युद्ध में करोना पर पलटवार

धोते रहो मेरे बच्चों हाथ तुम बारम्बा

कैसे भूल जाऊँ इन क्षणों को

अभिभावकों के सहयोग को

बने हैं सेतु

मुझे पहुँचा रहे हैं

मेरे नन्हे मुस्कुराते मन में

ज्ञान की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों तक

करोना तू बहुत कुछ सिखा गया

 टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल करना बता गया

-0- अंबाला शहर- 134004

 


 

 

1122

 1-प्रेम- गंगा: पूनम सैनी

 


आज भी थमी है आँखें

उस एक वक्त पर

जब आए थे तुम

मेरे करीब

बहुत करीब

मेरे कानों में जब

बुदबुदाए थे तुम कुछ देर

उतर गया है

हर लफ्ज़ हन में

गूँजती है कानों में आज भी

आवाज़ तुम्हारी

हाथ बढ़ाके  जब

थाम लिया था हाथ मेरा

महसूस आज भी होती है

वो अपनेपन की गर्माहट

सच कहूँ ?

कुछ ना सुना था मैंने

ना तब और ना अब

सिर्फ महसूस किया...तुम्हें

महसूस की तुम्हारी बढ़ी हुई धड़कन

महसूस किया शब्दों में लिपटी

भावनाओं को

सोख ली हर संवेदना 

समा लिया सब हर रोम में

अब जब-तब याद करती हूँ तुम्हें

याद आते है वो पल

प्रेम जिसे कहते है 

केवल तब महसूस हुआ

वो दिन था अवतरण का

अब याद में उस पल की

बह उठती है अविरल- सी

नयनों से निर्मल प्रेम की वो गंगा

-0-

2- प्रीति अग्रवाल

1- मेरे ख्वाबों के मंज़र
1.


मेरे ख्वाबों के मंज़र
खड़े हैं जहाँ,
आसमानों को छूता
है वो शिकार....
नींव उनकी तुम्हीं हो
ए मेरे सनम,
उनकी ताबीर, मेरी
हक़ीक़त हो तुम!!
2.
ग़ैरों की तरह
वो मिले आए यूँ....
कभी जानते थे,
भरम-सा हुआ....!
3.
तुम्हें मा करने की
कोशिश तो की थी....
मग़र क्या करूँ,
ज़ख़्म अब भी हरा है...!
4.
ऐ दरख़्त , तू कटके
है कागज़ बना,
हमारी ही ख़ातिर
हुआ है फ़ना.....
अदा, हक ये कैसे
तेरा मैं करूँ,
ले!
तुझ पर आज
कविता, मैं कहूँ...!
4.
तमाशायी हैं वो,
करतब, उनका काम......
तमाशबीन, मैं
बनूँ, न बनूँ.....
है, मेरे वश में ये,
मेरे वश में यही.....!
5.
चले जा रहे,

न ऊब, न थकन.....
है ये कौन सी मंज़िल,
जो रुकने नहीं देती....
6.
तुम्हें जान पाने की
कोशिश में हम....
हुए गुमशुदा कब,
खबर ही नहीं....!
7.
बात दिल की ही दिल में,
अगर रह गई....
ज़िन्दगी में कहाँ,
ज़िन्दगी रह गई.....!
8.
आता कुछ भी नहीं
कर लेती हूँ सब,
मैं नारी हूँ, चुप रहकर
कह लेती हूँ सब....
सुनते तो हैं वो, पर
शायद, समझते नहीं...
समझने में, उनकी,
भलाई जो नहीं....!
9.
उतरेगा कोई यूँ,
दिल में मेरे कभी....
बहुत होगा शोर, और
आहट, तक नहीं....!
10.
तू था वहीं
फिर भी लगा,
शामिल हूँ
बेगानों में, मैं.....
और
डूब रही थी मेरी कश्ती,
अपने ही, किनारों पे....!
11.
सोचते ही तुझे,
ये हुआ क्या मुझे....
टिमटिमाने लगे,
मन के दीपक बुझे.....!
12.
चाँदनी, तेरा क्या
जहाँ चाँद, वहाँ तू....
तू ठंडी सही,
जाने क्यों जला रही है....!

-0-
3 कविता-अधूरी सी

- प्रीति अग्रवाल

 

गिरती रही

सम्भलती रही,

जूझती रही

टूटती रही,

बिखरती रही

समेटती रही,

अपने, और

अपनों को,

ख्वाहिशें, और

सपनों को.....

जाने कौन संग चला

कौन पीछे रह गया,

मेरे वजूद का हर अंग

दुखता सा रह गया,

इस अधूरेपन के पार

जाने क्या देखा तुमने,

जो, अब भी कहते हो,

'तुम स्वतः पूर्ण हो"......!!

-0-