अनिता मण्डा
नेह -नदी का नीर हूँ, कर लो तुम स्वीकार
सूना-सूना सा लगे, नेह बिना संसार।।
सूना-सूना सा लगे, नेह बिना संसार।।
कलरव करते खग उड़ें, देते पुष्प सुवास।
धन्य भाग प्रभु ने हमें, दिया धरा पर वास।।
जाते सूरज से मिली, हुई जोगिया शाम।
घड़ी भर में सजा दिए, तारे- चाँद तमाम।।
सहमा-सहमा दिन गया, चुप सी आई रात।
दिल की दिल में सब रखें, करें न कोई बात।।
झर -झर झरती चाँदनी, भीगा हरसिंगार।
रजनी भीगी नेह से, पा प्रीतम का प्यार।।
रजनी भीगी नेह से, पा प्रीतम का प्यार।।
भोर सुहानी आ गई, डूबे तारक दीप।
कलरव कर पंछी उड़े पहुँचे गगन- समीप।।
कटे न आरी -धार से, दुख तरुवर
की डाल।
समय बड़ा बलवान है, लिख देगा सुख भाल।।
साँसें लेना कठिन है, दूषित नीर-समीर।
पेड़ काट क्यों दे रहे ,धरती माँ को पीर।।
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