डॉक्टर उपमा शर्मा
समय के साथ, साहित्य में परिवर्तन अवश्यंभावी है। मनुष्य के रुझान समय- समय पर बदलते हैं। साहित्यिक रुझान बदलना भी कोई आश्चर्य का कारण नहीं। छंदों के माधुर्य और सम्मोहन से निकल हिंदी में नई कविता का अवतरण हुआ। किसी भी भाषा में नई विधा का आविर्भाव अर्थात् किसी विधा में नए रूपों का उद्भव एक शुभ संकेत है। यह उस भाषा के निरंतर सृजनशील सामर्थ्य का परिचायक है। हिंदी कविता भी इसका अपवाद नहीं। यह सत्य है कि अनुशासन में रहकर प्रायः उत्तम कार्य संभव है; परंतु उतना ही बड़ा सच यह भी है कि कठोर अनुशासन की मर्यादा- सीमा को लांघकर ही कुछ नया कुछ आश्चर्यजनक रचा जा सके।
नई
कविता के साहित्य- जगत् में आगमन से ऐसा ही हुआ। पाठकों को इस नई
अतुकांत कविता का तीखा- कसैला स्वाद रुचिकर लगा। एक के बाद एक अनेक रचनाकारों की
रचनाओं ने पाठक वर्ग को अपनी और खींचा। अनुपमा त्रिपाठी की कविताओं में पाठकों को
गीत का माधुर्य और अतुकांत का तीखापन दोनों ही बखूबी मिलते हैं। उनकी प्रत्येक
कविता अनुभव की तपती भट्टी से गुजरी हुई प्रतीत होती है। कवयित्री को प्रकृति से
बेहद प्रेम है। उन्होंने अपनी कविताओं में बारिश,बादल ,सागर और पर्यावरण पर खुलकर कलम चलाई है। वे मानव के
विभिन्न आडम्बरों पर भी कटाक्ष करती हैं।
कभी
पूजा
कभी
इबादत कभी आराधन
जब
भी मिलती है मुझे,
भेस
नया रखती क्यूँ है
ए
बंदगी तू मुझे
नित
नये रूप में मिलती क्यों है।
यूँ
तो इस संग्रह की सभी कविताएँ दिल को छूती हैं। कवयित्री की कलम ने जिंदगी के कोमल
और तीखे दोनों एहसासों को बड़ी कुशलता से पृष्ठों पर उकेरा है। कविता का बुनियादी
उसूल है कि आपबीती को जगबीती और जगबीती को आपबीती बनाकर किसी भाव को पन्नों पर
उतारा जाता है। लेकिन अनुपमा त्रिपाठी ने जगबीती को बहुत कुशलता से शब्दों में
ढाला है। जीवन के हर रंग उनकी कविता में द्रष्टव्य होते हैं। उनकी
रचनाएँ सीधी सरल भाषा में हैं जो सीधे मन को छूती हैं-
उठती
हुई पीड़ा हो,
या
हो
गिरता
हुआ,
मुझ
पर अनवरत बरसता हुआ
सुकूँ।
उनकी
कविता 'चमेली के क्षुप को' पाठक के मन को सीधे छूती है-
कुछ
प्रयत्न ऐसे भी होते हैं
समूचे
जीवन को जो गढ़ते हैं,
कुछ
आशाएँ ऐसी भी होती हैं
नित
सूर्य संग उठती हैं।
कवयित्री की कविता की भाषा सहज परिमार्जित है। अतुकांत कविता की विशेषता
यही होती है कि इसमें सिर्फ भावनाओं को महत्त्व दिया जाता
है। इस कविता में कोई नियम की पाबंदी नहीं होती; लेकिन लिखने
का तरीका महत्व रखता है। अतुकांत कविता छंदमुक्त कविता के अंतर्गत आती है। अतुकांत
कविता हमेशा सरल शब्दों में लिखी जाती है, जिसमें रचनाकार
सीधी सरल भाषा में अपने भाव रखता है। इस कविता को पढ़ते-पढ़ते पाठक जब अंत में आते
हैं, तो अंत का हिस्सा पढ़कर उन्हें इस कविता के पूर्ण होने
का अहसास हो जाता है। यही अतुकांत कविता की बहुत बड़ी विशेषता होती है। अनुपमा की
कविताओं में यह विशेषता स्पष्ट द्रष्टव्य है। अंत तक आते आते
पाठक पूरी तरह कविता के भाव में खो जाता है। यथा
सुबह
से शाम होती हुई जिंदगी को
लिख
भी डालो लेकिन
रात
तलक सूर्योदय न हो हृदय का
रात
की सियाही को
उजाले
से जोड़ोगे कैसे… . . ?
हाइकु एक ऐसी कविता है जिसमें अर्थ ,गंभीरता एवं भावों का सम्प्रेषण इतना गहन एवं तीव्र होता है कि वह पाठक के
सीधे दिल में उतर जाता है। तीन पंक्तियों की पाँच सात पाँच के वर्णक्रम में लिखी
जाने वाली इस कविता में भावों की उच्चतम सम्प्रेषण क्षमता एवं अति स्पष्ट
बिम्बात्मकता स्थापित होती है।
हाइकु
केवल तीन पंक्तियों और कुछ अक्षरों की कविता नहीं है;
बल्कि कम से कम शब्दों में लालित्य के साथ लाक्षणिक पद्धति में विशिष्ट बात करने
की एक प्रभावपूर्ण कविता है।’
जिस
हाइकु में प्रतीक खुले एवं बिम्ब स्पष्ट हों वह हाइकु सर्वश्रेष्ठ की श्रेणी में
रखा जाता है। हाइकु अपने आकर में भले ही छोटा हो किन्तु ‘घाव करे गंभीर’ चरितार्थ करता है। यह अनुभूति का
वह परम क्षण है जिसमें अभिव्यक्ति ह्रदय को स्पर्श कर जाती है।कवयित्री के हाइकु
इस कसौटी पर खरे उतरते हैं-
खिली
लालिमा//देती अब संदेश/मिटी कालिमा
पर्यावरण
को/दूषित नहीं करो/सचेतो जन
कुसुम
खिले/पंखुड़ियाँ बोलतीं/खिलता मन
महके
मन/भीगी सी है पवन /गुनगुनाऊँ
प्रेम
जगाए /अनछुई भावना/सुनो तो सही
ये
जिजीविषा/साथ नहीं छोड़ती/जियो तो सही
चाहे
मनवा/आस घनेरी जैसी/शीतल छाँव
तपन
बढ़े/कैसे दुखवा सहूँ/जियरा जले
सुनो
न तुम/मेरी मन बतियाँ/नैना बरसे
ढलक
जायें/आँसू रुक न पायें /छलके पीर
कविता
का पूर्ण माधुर्य समेटे इन हाइकु में अनेक संकेत और बिम्ब छुपे हैं जो कवयित्री की
प्रांजल काव्य-भाषा में मार्मिक ढंग से ध्वनित और अभिव्यक्त हुए हैं। पुस्तक में
संग्रहित सारे ही हाइकु में , उसकी काव्यात्मक, मार्मिकता के साथ महत्ता उजागर हुई है । प्रथम हाइकु प्रकृति-बोधक है। यह
सूरज, रोशनी और अँधेरी रात के अंतर्संबंध और प्रकृति-सौंदर्य
का सुन्दर चित्र है । कवयित्री ने फूलों के खिलने पर मन प्रसन्नता को सुंदरता से
बिम्बित किया है। प्रकृति मानव मन को आह्लादित करती है । कवयित्री इसे यूँ कहती
हैं कि सुगंधित पवन से महका मन गुनगुना रहा है । इन
हाइकु से सिर्फ प्रकृति चित्रण के नहीं अपितु इससे अधिक के संकेत ध्वनित होते हैं
- गहरे मानवीय संबंध जन्य दुःख-सुखानुभूति भी बिम्बित होती है। वियोगाकुल डबडबाई
आँखों विरह वेदना दीख पड़ती है। इन हाइकु के तीनों पद अलग-अलग होकर भी एकार्थ
केंद्रित हैं, साथ ही, प्रथम और
तृतीय पद ईकारांत होने के कारण अतिरिक्त भाषागत लय का सुख भी
देते हैं। इसी प्रकार अन्य उद्धृत हाइकु भी कवयित्री की क्षण की अनुभूति में गहरे
और व्यापक सत्य के दर्शन कराते हैं। कवयित्री पर्यावरण सहेजने पर भी भरपूर ध्यान
दिलाती हैं।उनके ये हाइकु निर्विवाद रूप से उत्तम हाइकु कविता की कोटि में आते
हैं। स्थानाभाव के कारण सबका विश्लेषण यहाँ सम्भव नहीं है, फिर
भी उद्धृत छठे हाइकु से ध्यान नहीं हटता जिसमें कवयित्री जिजीविषा का सुंदर बिम्ब
खींचती हैं।
अनुपमा
त्रिपाठी के संग्रह 'अनुगूँज' की कविताओं में अभिव्यक्ति के मुखर स्वर
हैं।इन कविताओं में समय का एक तीखा बोध भी है। कविताओं में निहित प्रश्नों की
आकुलता, संवाद, आश्चर्य और विस्मय की
खूबियां उन्हें बार बार पढ़ने और सोचने पर मजबूर करती हैं।
अनुगूँज ( काव्य-संग्रह): अनुपमा त्रिपाठी, मूल्य:250, पृष्ठ संख्या:127,प्रकाशन
संस्थान 4268बी-3, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110011 -
23253234/43549101/43704384
-0-डॉक्टर उपमा शर्मा,बी-1/248, यमुना
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