परिचय
डॉ सुधा गुप्ता
जन्म - 18-5-1934
जन्म -स्थान- मेरठ ( उ.प्र.) भारत
शिक्षा- एम.ए., पी-एच.डी., डी.लिट्.
कार्यक्षेत्र- चौंतीस वर्ष वि.वि. के उत्तर-स्नातक महाविद्यालयों में आचार्य/प्राचार्य, अब सेवा निवृत्त।अब पूर्णत: लेखन को समर्पित
[प्रो, सत्यभूषण वर्मा जी के अनुसार –‘सुधा गुप्ता के हाइकुओं का मूल प्राण प्रकृति के रूप सौन्दर्य, उसके क्षण-क्षण परिवर्तित परिवेश और उससे जुड़ी मानवीय संवेदनाओं की सक्षम अभिव्यक्ति है। उनका प्रत्येक हाइकु एक लघु शब्द चित्र है ।” ]
1- मेघ-शशक
करने छिड़काव
पावस आया ।
2- फटती गई
अँधेरे की चादर
चाँद उघरा।
3- नन्हा घोंसला
बिल्ली की ताँक-झाँक
सहमी शाख ।
4- चन्द लकीरें
समय खींच गया
देह की माटी ।
5- साथ जो छूटा
दुःख पहाड टूटा
जीवन रूठा।
6-न काटो पेड़
बाबुना जो आएगी
कहाँ गाएगी ?
7-भटक गई
यादों के बीहड़ में
वहीं बसी हूँ ।
8-आँसू क्यों ढाऊँ ?
दुःख से मिलूँ गले
तुम्हें ही पा लूँ ।
9- ढंग अनूप
बरगद के नीचे
सुस्ताती धूप।
10- आग का गोला
डुबकी मार गया
हरे समुद्र ।
11- धूप के पाखी
आँगन में फुदकें
चढ़े मुँडेर ।
12- असंख्य जीव
ममता भरी गोद
मनाते मोद ।
13- लाल गुलाल
पूरी देह पै लगा
हँसे पलाश ।
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‘बाबुना जो आएगी’ -संग्रह से साभार
[बाबुना एक छोटी पीले रंग की पंछी है जो पेड़ों की ऊंची शाखाओं में बैठकर गीत गाना पसन्द करती है। ]
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