पथ के साथी

Monday, April 3, 2017

721

1-दमखम-कृष्णा वर्मा

हज़ारों आँधियाँ आएँ
करोड़ो हो बर्फबारी
खिलेंगे गुल किसी सूरत
हो चाहे लाख दुश्वारी।

सब्र रखो हिरासत में
जो आनन्द मानना चाहो
किला अपने मनोबल का
किसी सूरत में ना ढाओ।

ना ज़्यादा दिन चलें हैं ज़ुल्म
तुगलक हार जाते हैं
भयानक रात हो कितनी
सवेरे फिर भी आते हैं।

डराते हो हमें कि छोड़ दें
हम सारा जहाँ अपना
हो कितना भूत ताकतवर
निडर नहीं छोड़ते सपना।

मेरे लब पर दुआएँ हैं
है तेरे हाथ में ख़ंजर
जो दम है तेरे ख़ंजर में
तो कर मेरी दुआ बंजर।

मैं देखूँ झूठ तेरा कैसे
सच को कफ़न पहनाए
मेरे जज़्बे मेरे साहस को
कैसे घाट पहुँचाए।

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