पाठ
(साल के अंतिम पड़ाव पर पढ़िए 'नवतेज भारती' की अद्भुत प्रेम कविता । पंजाबी से
अनुवाद: हरभगवान चावला)
पाठ करते-करते
मैं तुम्हारे साथ बात करने लगती हूँ
पता ही नहीं चलता
पाठ कब सम्पन्न हो जाता है
तुम ख़ुदा से पूछना-
वह मेरा पाठ मंज़ूर कर लेता है?
ख़ुदा कहता है-
सब लोग मेरा पाठ ही करते हैं
काश! पाठ करते-करते
कोई मेरे साथ भी बात करने लगे
'बेचारा'...कहती-कहती
ख़ामोश हो गई
रात को फिर सपने में
ख़ुदा ने कहा-
माँग, जो माँगना है
तू अंतर्यामी है
तुझे पता है मैं क्या माँगती हूँ
फिर क्यों बार-बार पूछता है?
'शायद भूले-भटके ही
तू उसकी जगह मुझे माँग ले'- ख़ुदा ने कहा ।
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