पथ के साथी

Monday, March 12, 2018

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गायत्री

[गायत्री हरियाणा साहित्य अकादमी की परिष्कार शाला की प्रबुद्ध विद्यार्थी रही है]
1- महिलाओं की स्थिति( चिन्तन)
महिलाओं की स्थिति को लेकर एक दिन तो काफ़ी हंगामा होता हैं।जहाँ देखो वहाँ औरतो का ही ज़िक्र होता हैं।बड़े बड़े लोग टी.वी.चैनलों पर आते हैं औऱ पूरा दिन काफ़ी ज़ोर ज़ोर -शोर से महिलाओं के अधिकारों और इज्जत की बात करते हैं। फिर कुछ दिनों बाद वही लोग महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार या टिप्पणी करते हुए पाएँ जाते है। वे क्यों भूल जाते है कि कल आप भरी पंचायत में महिलाओं की पैरवी कर रहे थे। उनको देखकर तो ऐसा लगता है ,जैसे वे आठ मार्च का बुखार था और अगले दिन पहले जैसा हो जाता हैं।                                         
मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि सरकार महिलाओं के लिए इतने कानून बनाती हैं। नए -नए कार्यक्रम चलाती हैं ,फिर भी लोगों औऱ सरकार को यह क्यों दिखाई नहीं देता कि मीडिया के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया जा रहा है। मीडिया जिसे समाज का आईना कहा जाता हैं,जिसके द्वारा जन जागरण किया जाता है। आज वहीं अपने कर्तव्य से भटक चुका है। आज ऐसे-ऐसे कार्यक्रमों को दिखाया जाता हैं, जिसे देखकर हर कोई प्रभावित होता हैं । कहने का अभिप्राय यह है कि सीरियल के द्वारा ऐसी  तकनीकों को दिखाया जाता है कि वे अच्छे भले इंसान को भी अपराधी बना सकती कुछ ऐसे शो है, जो लोगो को अच्छी चेतना जगाने की बजाय उन्हें गुमराह करने व ग़ुनाह करने की नई-नई तरकीबें सुझाती हैं।जिस जे द्वारा मीडिया का ग़लत तरीके से प्रयोग किया जा रहा है।ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि मीडिया समाज में नेकी का स्रोत है ना कि अपराधों का।                                    
हिंदुस्तान के अंदर या यूँ कहें कि यहाँ के लोगों के द्वारा फ़िल्म निर्माता निर्देशक औऱ गायकों को बहुत मान सम्मान दिया जाता हैं ।यहाँ के जन-जन पर फिल्मों औऱ गानों की झलक देखने को मिलती हैं; किन्तु क्या आप ने कभी सोचा है कि इन गानों की शब्दावली औरतों को क्या इज्जत देती हैं।लोग बड़े चाव से इन गानों को सुनते औऱ गुनगुनाते हैं ।क्या कभी इन शब्दों के भाव को समझा है।गानों में लड़कियों के लिए आइटम ,पटाका, पटोला जैसे शब्दों का प्रयोग बड़े अभिमान के साथ होता है।तो  आप ज़रा सोचिए कि क्या ऐसे सम्बोधन  महिलाओं की गरिमा मैं चार-चाँद लगाते हैं? ये शब्द ऐसे हैं जो स्त्री को एक वस्तु के रूप में देखते हैं।ह मे इस बात के लिए आवाज़ उठानी चाहिए।इस पर कानून बनाया जाना चाहिए ताकि भविष्य में इन शब्दों का चलन बंद हो। जो इस प्रकार के तुच्छ मानसिकता का प्रदर्शन करें ,तो उसे अपराध माना जाए।अतः महिलाओं को एक आकर्षण औऱ उपभोग की वस्तु न समझकर उसके उत्थान के लिए आगें आना चाहिए ताकि वो भी एक खुशहाल जीवन जी सके।।              
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2- बहुत याद आती है
बहुत याद आती है तेरी माँ,
जब कोई कहता है मेरी माँ , मेरी माँ
मेरा भी दिल करता है , उड़कर पल में तेरे पास चली  आऊँ मैं 
तेरे सीने से लिपट जाऊँ मैं
बहुत याद आती है तेरी माँ
जब खाना- खाने आऊँ मैं
जी करता है तेरे आँचल में छुप जाऊँ मैं
तेरी ममता के पल्लू में कहीं खो जाऊँ मैं
बहुत याद आती हैं तेरी माँ
जब कॉलेज से घर आऊँ मैं मेरी आँखें बस तुम्हे ही ढूँढे और ढूँढती ही रह जाए माँ
न पाकर के तुम्हे वहाँ मेरे कदम वही रुक जाए माँ
तेरी याद में माँ हर पल बिता जाए  तेरे बिन जिंदगी भी रूखी नज़र आये माँ
 बहुत याद आती है तेरी माँ
-0-भट्टू कलाँ , जिला -फ़तेहाबाद -125052