पथ के साथी

Tuesday, March 26, 2013

फागुन की झोली से


1-रचना श्रीवास्तव
फागुन की झोली से
उड़ने लगे रंग

मौसम के भाल पर
इन्द्रधनुष चमके 
गलियों और चौबारों के
मुख भी दमके
चूड़ी कहे साजन से
मै  भी चलूँ संग

पानी में घुलने लगे
टेसू के फूल
 नटखट उड़ाते चलें
पाँवो से घूल
 लोटे में घोल रहे
बाबा आज भंग ।

सज गई रसोई आज
पकवान चहके
हर घर मुस्काते चूल्हे
हौले से दहके
गोपी कहे कान्हा से
न करो मोहे तंग  ।
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2-अनिता ललित
पूनम के चाँद पर.. आया निखार,
आया फाल्गुन आया.. आया होली का त्योहार !
नीले, पीले ,लाल, गुलाबी...रंगों की बौछार,
खुशबू टेसू के फूलों की...लाई संग बहार...!

दिल में उमंग उठी ... महकी बयार
अँखियाँ छलकाए देखो ...प्रीत-उपहार !

भूलो सभी बैर, मिटे गर्द-गुबार
भर पिचकारी मारो... नेह अपार !

फुलवारी रंगों की.. साथी फुहार
एक रंग रंगे ... आज हुए एकसार !

रंग-रंगोली हो या दीप-दीपावली...
दिल यही बोले...जब हों साथ हमजोली...

तुम हो तो....
हर रात दीवाली
हर दिन अपनी होली है....

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दोहे :-डॉ सरस्वती माथुर
1
रिश्तों में कुछ दूरियाँ, होली कम कर जाय
मिलते हैं नजदीक से, प्रेम पनपता जाय !
2
जग-आँगन में गूँजती, फागुन की पदचाप
कहीं फाग के गीत हैं, कहीं चंग पर थाप !
 3
फागुन गाए कान में, होली वाले राग
साजन की पिचकारियाँ, बुझे न मन की आग !
 4
राधा-कान्हा साथ में, मन में आस अनंत
नाच रहीं हैं गोपियाँ, झूमें फाग दिगंत !
5
साजन की बरजोरियाँ, प्रीत-प्रेम के रंग
भीग रही हैं गोरियाँ, नैना बान-अनंग !
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