पथ के साथी

Wednesday, May 22, 2013

आओ! बन जाएँ हम



पुष्पा मेहरा


आओ! मलय-पवन बन जाएँ  हम
गन्धहीन पवन में सुगन्ध भर दें
देवों के चरण ही न पखारें
स्वयं देव बन जाएँ  हम.

आओ! बसन्त बन छाएँ  हम
भूल जाएँ  पतझड़ की वीरानगी
हर डगर, हर नगर फूलों की पौध बन छाएँ  हम
आओ! लेखनी को डुबो नील रंग में
नीला आसमान उतार दें इस धरती के कागज पर

आओ! नक्षत्रों की सारी प्रभा में
बस एक मात्र प्रेम का प्रतिबिंब निहारें
हाथ से हाथ बटाएँ -
अँधेरे के बागों में उजाले के फूल खिला दें

माँगें न चाँदनी हम चाँद से
किरच-किरच धूप सूरज की
सहेज लें हम हर कोने से
उजालों का इतिहास खोजते ही न रहें
अँधेरे खंडहरों में
अँधेरा और उजाला खोज लें मन की खोह में
आओ! सद्भाव. स्वधर्म समभाव के
गिरि शृंग बन आत्मजयी बन जाएँ  हम
असम्भव का अन्धकार हटा दें
सुनीतियों की मशाल ले
नव- स्फ़ूर्ति भरा नव उल्लसित वर्तमान बना दें हम
आओ! मलय पवन बन जाएँ  हम ।
-0-