पथ के साथी

Wednesday, May 27, 2020

995-लिखूँ तो क्या लिखूँ ?

1-तुम्हारे लिए-प्रियंका गुप्ता

चाहा था तुमने
लिखूँ मैं कोई कविता
तुम्हारे लिए
सबसे अलग
सबसे जुदा
सबसे अनोखी
कोई कविता;
आसमान नहीं
परियाँ नहीं
फूल और बाग बगीचे नहीं
न ही जिक्र हो कहीं
चाँद-तारों का-
गढ़ूँ मैं उपमा कोई नई ही;
पर सोचता हूँ
लिखूँ तो क्या लिखूँ ?
उपमा गढ़ना मुश्किल तो नहीं 
पर क्यों करूँ ऐसा ?
जब कि तुम खुद ही हो
खुद में मुक़म्मल 
एक कविता,
और कविता के लिए भी 
कोई कविता लिखता है भला !!!
-0-
2-दोहे -ज्योत्स्ना प्रदीप 
1
करें नमन उनको सभी, जो क़ुदरत के नूर ।
धरती उनसे ही बची, वो ही कोहेनूर ।।
2
क़ुदरत तो नाराज़ है, मानव अब  मजबूर ।
कुछ अपनों के पास हैं, कुछ अपनों से दूर ।।
3
मज़दूरों की बेबसी, चलते मीलों -मील ।
सूख रही है रात दिन, उन नयनों की झील ।।
4
रोगों का ना ख़ौफ़ है, खाली पेट ग़रीब ।
कूड़े में भी ढूँढता, खोजे रोज़  नसीब।।
5
ऐसे सोये थे सभी, सारे वो मज़दूर।
देख सके ना फिर कभी, सूरज का वो नूर ।।
6
मज़दूरों की बेबसी, सहम गई  थी  रात ।
पटरी पर भी सो गए, कैसे रे हालात ।।
7
खिड़की से झाँको ज़रा,विहगों की है भीड़ ।
हर्ष मनाते वे  सभी, मानव अपने नीड़।।
8
पंछी भी  गाने लगे, अपने ही कुछ राग ।
उनमें भी कब से भरी, आज़ादी की आग ।।
9
क्यारी में जीवन खिला, खिले अनेकों  फूल ।
निखरे -निखरे अंग हैं, उन पर ना अब धूल ।।
10
चलो बचा लें आज से, क़ुदरत  की सौगात ।
खुशियों से बिछ जाएगी, फिर से नेह -बिसात।।
11
कुछ तो भारी हो गई, इस दुनिया से चूक
महफ़िल में भी हो गया, मानव कितना मूक ।।
12
गंगा,यमुना खिल उठीं ,निखरे दर्पण -गात 
नद पर गिरते प्रेम से, ये हरियाले पात ।।
13
नभ निखरी चादर बना, चंदा  कोहेनूर ।
तारे हीरक-से लगें,दीपित नभ भरपूर ।।
14
फूलों  के  सेहरे बनें , पेड़ बनें  महबूब ।
इतराती  हैं आज -कल, कलियाँ भी तो खूब ।।
15
घूम रहे  बेख़ौफ़ हो, मृगकुंजर, घड़ियाल 
मानव जीता ख़ौफ़ में, लेकर कई सवाल  ।।
16
आँखों से जो ना दिखे, जग को नाच नचाय ।
खुद को माने जो खुदा, सोच -सोच पछताय ।।
-0-

3-अनुभूतियाँ- प्रीति अग्रवाल

1.
इशारे पे जिसके ये सब हो रहा है...
फरियाद लें हम, उसी दर पे पहुँचे!
2.
खता तो न पता, पर होगी संगीन
अंदाज़ा सज़ा से, हम लगा रहें हैं।
3.
ऐसी उलझी है, रेशम-सी जीवन की डोर
कहीं भी सिरे, न कोई मिल रहे हैं....।
4.
डबडबाई- सी आँखें, डूबा-डूबा- सा मन है
एक हो तो कहूँ, क्या कहूँ कि क्या ग़म है!
5.
दूर, आसमानों के पार, कुछ भी नहीं!
यहीं तो है स्वर्ग, और जहन्नुम यहीं।

6.
चाँद तारों को छूने की, उनको लगी...
जो दिल तक किसी के, न पहुँचे कभी!
7.
क्या खूब जुगलबंदी, हुई आज यारो!
निगाहों की भाषा, निगाहों ने बाँची!
8.
सफाई से हम झूठ कहने लगे हैं....
न जाने ये इश्क, और क्या-क्या सिखाए!
9.
धरती अम्बर क्षितिज पर, कुछ ऐसे मिलें
कसमसाया ये मन, तुम बहुत याद आए।
10.
न करो तुम याद, न याद आया करो....
जो उठती है हिचकी, तो रुकती नहीं है।
11.
ऐ दोस्त तू हमदर्दी, बस थोड़ी जता...
सिले घाव, फिर से, खुले जा रहें हैं!!
12.
तुम 'तुम्हीं' में लगे, हम 'हमीं' में लगे
मिलके जो कभी की, तो महज़ बहसबाजी।
13.
ये दरारें, खाई कहीं बन न जाएँ
चलो अलविदा, उससे पहले ही कह दें...।
14.
हुई साँझ, पंछी भी घर को हैं जाते
क्या अच्छा होता, जो तुम भी लौट आते...!
15.
न ये गीत, न ग़ज़ल, न है कोई कहानी
एक घुटन थी, जो बस, हो रही है ज़ुबानी...।
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