श्री किशन सरोज ( जन्म 19 जनवरी 1939) राष्ट्रीय स्तर के गीतकार
हैं। इनका गीत संग्रह 'चन्दन वन डूब गया' सन्
1986 में प्रकाशित हुआ। यह वह समय था , जब छपने की आपाधापी नहीं थी। इनके निकटतम साथी
भी चुप्पी मार गए। मुझे इनके चरण स्पर्श करने वाले शिष्य से पुस्तक पढ़ने को मिली।
पढकर मुझे पुस्तक लौटानी पड़ी।मैंने संग्रह की प्रथम समीक्षा लिखी , जिसे अमर उजाला दैनिक में सहर्ष
प्रकाशित किया गया। संग्रह की अधिकतम प्रतियाँ एक शहर के बरामदे में पड़ी-पड़ी भीगकर
काल कवलित हो गई । उसी संग्रह का एक गीत आपके लिए।
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तुम निश्चिन्त रहना
किशन सरोज
कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब तुम्हारे पत्र, सारे चित्र, तुम निश्चिन्त रहना ।
धुंध डूबी घाटियों के इंद्रधनु तुम
छू गए नत भाल पर्वत हो गया मन
बूँद भर जल बन गया पूरा समंदर
पा तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन
अश्रु जन्मा गीत कमलों से सुवासित
यह नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना ।
दूर हूँ तुमसे न अब बातें उठें
मैं स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वह नगर, वे राजपथ, वे चौंक-गलियाँ
हाथ अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
छोड़ आया वे पुराने मित्र, तुम निश्चिंत रहना ।
लो विसर्जन आज वासंती छुअन का
साथ बीने सीप-शंखों का विसर्जन
गुँथ न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में
उन अभागे मोर पंखों का विसर्जन
उस कथा का जो न हो पाई प्रकाशित
मर चुका है एक-एक चरित्र, तुम निश्चिंत रहना ।
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