1-डॉ. सुषमा गुप्ता
टूटे हुए पत्ते ने
शाख से पूछा-
‘क्या करू
जतन
जो तू फिर से
अपना ले मुझे
बहुत याद आता है
बहारों में तुझ पे झूलना।’
रूखा-सा जवाब आया-
‘हवा के साथ
कभी शाख से टूटे पत्ते भी
जुड़ा करते हैं
तुझे तो इस मिट्टी में ही
अब है मिलना।’
पत्ता धुन का पक्का
चुपचाप घुला मिट्टी में
जड़ों से तने
तने से शाख में पहुँचा
कि उसे फिर पत्ता बन
इसी शाख से था लिपटना।
कमाल का हौसला था
अदना -से पत्ते
का
और कमाल का ही सब्र
उसके हौसले का
लो इंसानों तुम्हें
अब भी रह गया ये सीखना !
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2-हौसलों की आग
मैं उजाला हूँ
अँधेरे खा नहीं सकते मुझे
बहुत सदियों से मैं ही अँधेरे
ग्रास करता हूँ।
मुश्किलें तो आती हैं
मुश्किलें तो आएँगी
में कहाँ
प्रकृति के नियम से
इन्कार करता हूँ।
पर एक नियम
विनाश के बाद
सृजन का भी है
अपनी मृत होती रूह में
यूँ जीवन संचार करता हूँ
।
अजर-अमर अजेय
कभी अँधेरे हो नहीं सकते
हथेली पर लिये
दीया हिम्मत
इन्हें आह्वान करता हूँ
।
छिन्न-भिन्न कर दूँगा
कण-कण को अँधेरे मैं तेरे
तू देख बस
खुद में मैं कैसी
हौसलों की आग रखता हूँ ।
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2- पूनम सैनी
1-नया सफ़र
सहर नई,पंछी वही,
परवाज़ नई
सागर- से विशाल
हौसले लिये
दीप -सी चमक आँखो
में उतारे
झील- से गहरे भाव
कोमल छुईमुई -से मन में
पिरोए
आगाज़ कर रहे है
नए सफ़र का
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2-दीप नहीं आशा मेरी
दीप नहीं आशा मेरी
कहो कभी बिन बाती के
भी
क्या जलते देखा दीप कोई
जब तक बाती तेल रहेंगे
रोशन दीप तभी तो होगा
पर आशा की ज्योति
मेरी
बिन ईंधन ही जलती जाए
घोर तूफानों के आगे मैंने
नतमस्तक कब होना सीखा
पर वो आँधी के झोंके
सहके
आखिर कब तक जल पाएगा
दीपक तेरी लौ छोटी है
सीमाओं में बँधा हुआ तू
क्या क्या रोशन कर
पाएगा
आशा हिम्मत की साथी
घोर
तिमिर में एक किरण
आशा की ज्योति जब
जगती
सूरज भी फीका पड़ जाए
लाख तूफानों से घिरी
हो
मुमकिन नहीं ये बुझ
जाए,
दीप नहीं आशा मेरी
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