नववर्ष गीत
डॉ. सुरंगमा यादव
प्राची में सूरज की लाली
देखो कैसी छटा निराली!
नव आलोक हृदय में भर ले
जग री आली जग री आली !
नैना जागे मन है उनींदा
जैसे बादल जल से रीता
नवचेतनता मन में भर ले
अलस त्यागकर अब तो आली !
जीवन पल-छिन बीता जाता
पल में क्या से क्या हो जाता
रूठे सजन मनाकर हँस ले
पीछे मत पछताना आली!
जो पतझर से घबराएगा
गीत वसंती क्या गाएगा
टूटे तारों को उठ कस ले
राग नया फिर गा ले आली!
बिछड़ गया जो साथी पथ में
साथ न तेरे चल पाएगा
निज पलकों की नमी छिपाकर
तुझको हँसना होगा आली !