पथ के साथी

Monday, May 26, 2025

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रणभेरी-2

डॉ. सुरंगमा यादव

  

धोखा खाते रहने की तो आदत-सी पड़ी हमारी

तभी जागते हैं हम जब नुकसान उठा लेते भारी

हवा के रुख का हम कैसे अनुमान नहीं लगाते हैं

दीपक बुझने से पहले क्यों ओट  नहीं  कर पाते हैं

रहें पीटते खूब लकीरें साँप नहीं मर पागा

मौका मिलते ही वह फिर से अपना फन फैलाएगा

जो मरने पर तुले हुए हैं,उनका क्या ही रोना है

लेकिन निर्दोषों को कब तक अपनी जानें खोना है

आजादी के लिए लड़े जो उनका तो एक  र्म था

मिलकर था खून बहाया,सबको प्यारा राष्ट्र धर्म था

अमिट शृंखला बलिदानों की, तब  थी आजादी पा

पर आजादी के संग  त्रासदी बँटवारे की  आ

कितने बिछड़े, कितने बेघर, जान गँवाई कितनों ने

भाई- भाई अब दुश्मन थे, लूट मचाई अपनों ने

ऐसा हमें मिला पड़ोसी, जिसे कब सद्भाव सुहाया

जिसकी रगों में रात और दिन, सिर्फ़ दुर्भाव समाया

जिन दरबारों में आतंकी आका बनकर फिरते हैं

अपनी बर्बादी का वे नित खुद शपथ पत्र भरते हैं

फौज जहाँ की हत्यारों को, अपना  शीश झुकाती है

उसकी मंशा क्या होगी, बात समझ खुद आती है

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