1-भीकम सिंह
पेड़-1
जुगनूँ का
अँधेरे पर आघात
रात को
जमीं नहीं ये बात
इस पर
फड़-फड़ ,
लड़े ,पीपल पात
तब हुई शांत
अँधेरा पीती रात ।
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पेड़ -2
छाँह
पीपल की
ऑक्सीजन डोज ।
स्नेह का धागा
बाँधते हो
रोज ।
कभी तो
पीपल के वास्ते जी लो
लगाकर पौध ।
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पेड़-3
टूट कर गिरे पत्ते
फैली
पेड़ों में भ्रांति
वनविभाग
बता रहा
कोई क्रांति ।
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सुना है-
तुम फिर झिलमिलाने
खिलखिलाने लगी हो, नदी ।
वो चाँद से
मन का बहलाना
नजदीकियाँ बढ़ाना
हवाओं के स्पर्श से
लहरें उड़ाना
रातों में
फिर करने लगी हो, नदी ।
किसी
अधजली लाश से
पछाड़ खाकर पास से
दियों और सिक्कों से
नंगों और भुक्खों से
बातों में
पिंड छुडाने लगी हो, नदी ।
सुना है-
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गुज़रे वक्त में
बड़ी होती हैं लड़कियाँ ।
इसलिए
सुनसान सड़कों पर
कुछ फुसफुसाती
ह्रदय विदारक पीर लिये
खड़ी होती हैं, लड़कियाँ ।
शब्द !
पगध्वनि !
जो आशंका की
घड़ी होती हैं, लड़कियाँ ।
विश्वास से भरा
परि-आवरण
अन्दर छुपाए
घर-घर में खुशी की
झड़ी होती हैं लड़कियाँ ।
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एक गाय थी उसके पास
वह उसे चारा देती, दूहती
गोबर पाथती
कभी-कभार जब गाय को
पसंद न आता सानी-पानी
सींग दिखा देती गाय
लात मारती।
उसके तो सींग भी लुप्त हो चुके
सदियों पहले
लात मारना उसका
उसे असभ्य करार देता।
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2-पत्थर
दो पत्थर थे घर में
दोनों से वह सुबह शाम रूबरू होती
एक पर मिर्च मसाला पीसती
एक को अगरबत्ती दिखाती
छोटी सी गृहस्थी में
कुछ नहीं था
इनसे ज़्यादा ज़रूरी
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