पथ के साथी

Saturday, February 25, 2023

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 1-बीज

सुमन झा

 


कभी मत कहना

कभी मत सोचना कि

मैं  वो बीज हूँ

जो कभी अंकुरित हुआ ही नहीं।

बीज हो गर प्यार का

तो

जाँचें पहले वफ़ा की मिट्टी

हर गीली मिट्टी में वफ़ा नहीं होती

क्योंकि दिखावा, प्यार नहीं होता

फिर

 डाले अपनेपन का खाद उसमें और

समय और समझ के जल से सींचे

समझे ख्यालात को और बिसात को

वरना

 एकतरफा वफ़ाएँ 

 बहुत तकलीफ़ देती हैं

 एकतरफ से सेंककर

 तो

 रोटी भी नही बनती यारो।

 प्यार क्या ख़ाक होगा?

 और

 मिट्टी में पड़ा बीज कभी नष्ट नही होता

 फूटकर बिखर जाता है

 दबा पड़ा होता है, कहीं किसी कोने में

 फिर

 जब भी, जरा- सी भी,

हाँ सेभी  थोड़ी हमदर्दी मिली

वह पुनः पनपने लगता है,

तो

अब

और न कहना 

कभी मत सोचना कि

मैं वो बीज हूँ जो कभी अंकुरित हुआ ही नहीं।

-0-सुमन झा, गोरखपुर

-0-

2- मेरी गुड़िया

सुरभि डागर

 


मेरी गुड़िया बड़ी हो गई

गुड्डे -गुडिया के खेल

खेलती मेरी गुड़िया

बड़ी हो गई।

अब नहीं करती ज़िद

न‌ ही नखरे दिखाती है

पहले होती थी नाराज़

छोटी-छोटी बातों में

अब जख्म को भी 

छुपाती है।

चाट, गोलगप्पे को 

देख खिलाता था चेहरा 

अब खुशी से दाल रोटी 

खाती है।

बाजार से नहीं लौटती

थी खाली हाथ 

अब पुरानी साड़ी को भी 

अभी नई बताती है।

भूल‌कर वो खुद को

अपनी जिम्मेदारी निभाती है 

लहराती थी गेहूँ की बालियों- सी

अब आँखों से सब कह जाती है।

-0-