माहिया पंजाब के प्रेम गीतों का प्राण है । पहले इसके विषय प्रमुख रूप से प्रेम के दोनों पक्ष- संयोग और विप्रलम्भ रहे हैं।वर्तमान में इस गीत में सभी सामाजिक सरोकारों का समावेश होता है । तीन पंक्तियों के इस छ्न्द में पहली और तीसरी पंक्ति में 12 -12 मात्राएँ तथा दूसरी पंक्ति में 10 मात्राएँ
होती हैं। पहली और तीसरी पंक्तियाँ तुकान्त होती है ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
आँसू जब बहते हैं
कितना दर्द भरा
सब कुछ वे कहते हैं।
2
ये भोर सुहानी है
चिड़ियाँ मन्त्र पढ़ें
सूरज सैलानी है ।
3
मन-आँगन सूना है
वो परदेस गए
मेरा दु:ख दूना है।
4
मिलने का जतन नहीं
बैठे चलने को
नयनों में सपन नहीं।
5
यह दर्द नहीं बँटता
सुख जब याद करें
दिल से न कभी हटता ।
6
नदिया यह कहती है-
दिल के कोने में
पीड़ा ही रहती है ।
7
यह बहुत मलाल रहा
बहरों से अपना
क्यों था सब हाल कहा।
8
दिल में तूफ़ान भरे
आँखों में दरिया
हम इनमें डूब मरे।
9
दीपक -सा जलना था
बाती प्रेम -पगी
कब हमको मिलना था।
10
तूफ़ान-घिरी कलियाँ
दावानल लहका
झुलसी सारी गलियाँ।
21/11/11