रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
दुश्मनी तो निभा न सका कोई दुश्मन
जितने थे दोस्त , उनसे बेहतर निकले ।
मैं शहर में हूँ, तो डर लगता है बहुत
बियाबाँ में रहूँ जब, तो कुछ डर निकले ।
गुज़ारूँ रात कहीं, मैं सोचकर निकला
तलाशा था जिन्हें ,वे तो बेघर निकले ।
बरसों से रहे संग , कुछ भी ना सीखा
जब कीं बातें, बातों के ख़ंज़र निकले ।
तन्हा ही चले थे , हम जब दो ही क़दम
अकेले तुम ही थे ,जो हमसफ़र निकले ।
(21 जुलाई, 12]