डॉ. सुरंगमा यादव
1- वर्तमान में आग लगाकर
एक अपने के ठुकराने से
रूठा जग से नहीं जाता है
वो यदि अपना होता
ठेस पे ठेस लगाकर
उपहास न करता
अपना बनकर छलने वाला
शत्रु से बढकर घातक होता है
टूट गया जो प्रेम का नाता
सबसे नेह नहीं तोड़ा जाता है
कुछ अपनी,कुछ उसकी
मर्जी
सदा स्वीकार नहीं होती है अर्जी
मनचाहा सब कुछ दुनिया में
नहीं सदा ही मिल पाता है
दुःख साधन को पकड़े रहने से
हारिल बनकर स्वयं बँधा बंधन में
एक सुख के न मिल पाने से
रोना-गाना अधिक नहीं भाता है
दिखीं दरारें, भरना संभव
सीलन की ;पर राह खोजना दुष्कर
सीली लकड़ी सुलग-सुलगकर
हानि आँख की करती
सीले ईंधन के कारण
चूल्हा नहीं तोड़ा जाता है
असरदार हो औषधि कितनी
घाव हमेशा
धीरे-धीरे ही भरता है
एक घाव की खातिर
अंग नहीं काटा जाता है
वर्तमान में आग लगाकर
भविष्य का उपवन
खिला नहीं करता है
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2- आया कैसा दौर
काँटों की रंजिश में
कब तक कलियाँ
छलनी होंगी
भँवरों की मनमानी को
कहो कहाँ तक
सहन करेंगी
सोच में डूबी
बगिया सारी
कल होगी किसकी बारी
मौन हुई नन्हीं किलकारी
छोड़ गई मन में चिंगारी
मैं तो जीवन हारी
अब न आए किसी की बारी
माली की कैसी लाचारी
ममता सहमी
किस दर जाएँ
कैसे पाएँ फिर से उसको
कैसे न्याय दिलाए
नहीं सूझता ठौर
आया कैसा दौर
गिद्ध दृष्टि घात लगाए
घूमें गली-गली
कैसे पनपे हाय!लली
देर न कर अब
उठना होगा
वरना हाथों को मलना होगा
मेरी-तेरी भूल,
खड़े हो साथ
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