जनक छंद - विभा रश्मि
1
मेघा भेद न खोल दें ।
देस - डगर को नापकर
भीगे अश्रु ना मोल दें ।
2
मनवा का दुखड़ा सुना ।
सुलझेंगी गाँठें छ्ली
जिनको
तूने ही चुना ।
3
बरखा जल ने भर दिए ।
खुश है धरती भीगती
पत्तों के दिल तर किए ।
4
चिड़िया डैने मारती ।
बौछारों में उड़ चली
चिकलों पर सब वारती ।
5
बूँदों की इक माल हूँ ।
मैं जोहड़ में जा मिली
लहरों की लय - ताल हूँ ।
6
हरियल शुक रस घोल दे ।
मीठी वाणी कर्ण में
नेहिल सा अब बोल दे ।