पथ के साथी

Saturday, September 14, 2019

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1-मातृभाषा
सत्या शर्मा 'कीर्ति'

अकसर अपनी 
आंतरिक तृप्ति के पलों में
बो देती हूँ अपनी भावनाओं के कोमल बीज
जहाँ निकलते हैं शब्दों के नाज़ुक कोमल-से फूल
उन्हें हौले से तोड़कर
सजाती हूँ पन्नो के ओजस्वी कंधों को

वर्णों के रेशमी धागों को
बाँधती हूँ कलम की सशक्त कलाई पर
और छंदों की नावों संग घूम आती हूँ
गीतिका की लहरों पर
जहाँ  मात्राओं की अनगिनत उर्मियाँ
देती है जन्म
 किसी भावुक सी कविता को
तब अनायास ही खिलखिला
पड़ते हैं हजारों अक्षर
दीपावली के जगमगाते जीवंत दियों-जैसे
तब मेरे मन के पायदान से
उतर आते हैं कदम-दर-कदम
किसी देव पुत्र-से कहानियों के अनेक चरित्र
जो ले जाते हैं मुझे
किसी उपन्यास की खूबसूरत वादियों में

तब मैं और भी हो जाती हूँ समृद्ध  
जब सुसज्जित सी व्याकरणमाला 
करती है  मंगलाचरण हमारी मातृभाषा का
और फिर सौंदर्य से जगमगाती
हमारी तेजस्वी हिंदी
करती है पवित्र हमारी जिह्वा को 
करोड़ों हृदयों को करती है आनन्दित

और देती है आशीष हमें
हिन्दी भाषी होने का।
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 ईमेल -- satyaranchi732@gmail.com

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2-भिगोने के बहाने

डॉ. पूर्वा शर्मा
1.
चलो माना कि सारी ख़ताएँ मेरी,
सजा के बहाने ही सही
तुम एक बार तो रूबरू होते।
2.
कई दिनों से मुलाकात नहीं,
सोचा आज शब्दों से ही छू लूँ।
3.
समझता नहीं ये नादाँ दिल कि तू यहाँ नहीं है मौजूद
तुझसे मिलने की ज़िद पर अड़ा, ढूँढे तुझमें खुद का वजूद।
4.
न कोई आहट, न कोई महक
फिर भी आँखें करती इंतज़ार
हो रहा मन हरपल बेक़रार।
 5.
सब कुछ तो छीन ले गए,
उपहार में इंतज़ार दे गए.
6.
हर बार छूकर चले जाते
क्यों नहीं ठहर जाते
तुम समुद्री लहरों से मनचले
मैं किनारे की रेत-सी बेबस।
7.
इश्क़-सौदा... बड़ा महँगा पड़ा
वो दिल भी ले उड़ा,
बेचैनी देकर फिर ना मुड़ा।
8.
बड़ी कमाल
हमारी गुफ़्तगू
बिन सुने, बिन कहे
सदियों तक चली।
9.
ये बूँदें भी कमाल हैं ना?
भिगोने के बहाने तुझे आसानी से छू गई.
10.
मुझे तो ये बारिश भी तेरे प्रेम की तरह लगती है
थोड़ी-सी बरस कर, बस तड़पा और तरसा जाती है।
11.
तेरे बिन ना जाने ये राहे कहाँ ले जाएँगी
बस इतनी दुआ है कि इन राहों कि मंज़िल तू ही हो।
12.
कितना तड़पाओगे
बारहमासा तो बीत चला
ये बताओ तुम कब आओगे?
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