पथ के साथी

Sunday, February 28, 2016

621



क्षणिकाएँ
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1
अक्स !

यूँ छुप तो जाते हैं
दिल के छाले
जतन से ...
छुपाने से
कैसे रोक पाऊँ मैं
अक्स..
रूह के ज़ख़्मों के
लफ़्ज़ों में उभर आने से !!
-0-
2
उम्मीद !

कतरे पंख
और ..लग गए खुद ही
मर्सिया गाने में
ठहरो !
ज़िन्दा हूँ अभी
भरूँगी उड़ान ....
कुछ वक़्त तो लगेगा
नए पंख आने में !!
-0-
3
तेरी याद !

एक बदली है
दिल के सहरा को
इस तरह ...
पल-पल परसती है
जिस तरह ...
भरके माँग तारों से,
रात की दुलहिन
रात भर तरसती है !!!
-0-
4
तितली

कैसे मन को
सुकूँ ..
कैसे तन को
आराम !
नर्म ,नाज़ुक
ख़ूबसूरत देह
और ...
फूलों में,शूलों में
विचरने का काम ...
मेरे खुदा !
तू ही बता
क्या होना अंजाम ?
-0-

620



1-रंग रहें बिखरे
भावना सक्सैना

आओ हिलमिल इस मौसम में
रंगों का आह्वान करें।

मुस्कानों के इंद्रधनुष हों
ओस कणों से छनती किरणें,
रोशनी हो हर ओर जहाँ में
रंग रहें चहुँ दिक् बिखरे।

ज्ञान, प्रेम, आनंद का पीला
बरबस सब पर रहे चढ़ा,
आलोकित हर एक हृदय हो
दिन -दिन जीवन जा निखरे।

नीली धरती, नीला सागर
नीले विष्णु, कृष्ण और राम,
शुद्धता हो हर ओर समाहित
अम्बर नीला, नील निरख रे।

पीले में घुल कर नीला
समृद्धि की लाये बहार
हरी भरी धरती हो जाए
दिल सोने से रहें खरे।

ओज वीरता पावनता
रंग केसरिया संग छिड़कें
देश प्रेम रग रग में बहे
बहे लहू परवाह न करे।

लाल बैंगनी आसमानी के
अपने नूतन अंदाज़ नए
आठवाँ रंग खुशियों का बिखेरें
आज प्रतिज्ञा सब ये करें।
-0-

2-एक छोटी -सी कविता
डा.सुरेन्द्र वर्मा

स्मृति के रंगीन टुकड़ों को जोड़ कर
एक साफा बनाया था
सिर पर सजाने के लिए.
अनागत में विचरते पलों को
समेटकर
एक चोगा बनाया था
लपेटने के लिए .
लेकिन धोखा खा गया!
गत और अनागत
कुछ भी काम न आया
वर्त्तमान था
वह भी गुज़र गया !
-0-