पथ के साथी

Friday, June 17, 2016

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कृष्णा वर्मा

तुम्हें नहीं देखा कभी
घर में कुछ छूटे हुए तुम्हारे चिह्नों ने
मुझे तुमसे परिचित  करवाया
जिन्हें माँ ने यादों की तह संग
एक संदूक में रख छोड़ा था
तुम्हारे कुरते के सोने के बटन
जिनकी चमक मुझे जब-तब
कितना लुभाती रही होगी
और तुम्हारी गोदी में बैठ मुझे
खिलौने का- सा आनन्द देते रहे होंगे
तुम्हारा धूप का काला
जिसे कई बार मेरे नन्हें हाथों ने
उतार लेने की ज़िद्द की होगी
तुम्हारी हाथ- घडी, पेन,
कमीज़ों के कफ लिंक्स जिन पर लिखा
मेड इन इंगलैंड स्पष्ट करता है
तुम्हारे शौकीन मिज़ाज़ को
माँ और तुम्हारे पवित्र रिश्ते की निशानी
वह शादी की अँगूठी आज भी
ज्यों की त्यों सहेज रखी है
तुम्हारे कपड़े जूते शायद किसी ज़रूरतमंद
पिता की ज़रूरत को पूरा करने के लिए
दान के रूप में दे दिए गए होंगे
सिल्क जौरजेट की सुन्दर रंग-बिरंगी साड़ियाँ
जो तुम कभी प्यार से माँ के लिए लाए होगे
उदासी ओढ़े पड़ी हैं संदूक में
माँ ने तुम्हारी गुमसुम यादें
उनमें लपेट आज तक सन्दूक में
कपड़ों की तहों के सबसे नीचे दबा कर रखी हुई हैं;
क्योंकि उन रंगों को पहनने का हक
जो तुम माँ से छीन  ले गए हो अपने साथ
और दे गए श्वेत शांत दूधिया  रंग ओढ़ने को
जो बेरंग जीवन के लम्बे रास्तों को
अकेले ही तय करने का अहसास दिलाता  रहे
तुम्हारी प्रीत की दो निशानियाँ  हैं उसके पास
जिनमें तुम्हारे ढब और शील झलकते हैं
अदृश्य से आज भी जीवित हो तुम 
माँ के इर्द-गिर्द।
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