1-बरखा रानी
( सार / ललित छंद )
महेन्द्र देवांगन 'माटी'( सार / ललित छंद )
झूम रहे सब पौधे देखो , आई बरखा रानी ।
मौसम लगता बड़े सुहाना , गिरे झमाझम पानी ।।1।।
इस हर्षित धरती को देखो , हरियाली है छाई ।
बाग बगीचे दिखते सुंदर, मस्ती सब में आई ।।2।।
कलकल करती नदियाँ बहतीं , झरना शोर मचाए ।
मोर नाचते वन में देखो , कोयल गाना गाए ।।3।।
बादल गरजे, बिजली चमके , घटा घोर है छाई ।
सोंधी सोंधी माटी महके , बूँदें उसको भाई ।।4।।
खेत क्यार में झूम झूमकर , फसलें सब लहराएँ ।
हैं किसान को खुशी यहाँ पर , पंछी गीत सुनाएँ ।।5।।
-०-महेन्द्र देवांगन माटी (शिक्षक) ,पंडरिया ( कवर्धा) ,छत्तीसगढ़
mahendradewanganmati@gmail.com
8602407353
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2-पूर्ण
मंजूषा मन
तुम्हें चुकाने होंगे मेरे सुख चैन
तुम्हें लौटा देने के होंगे
मेरे सपने
दे देने होंगे सारे के सारे आग्रह
सारी उम्मीदें
सब आशाएँ
वरना तुम्हें
और तुम्हारे साथ मुझे भी
फिर- फिर लौटना होगा
इस धरती पर
कितने ही जन्मों तक...
जो बाकी रखोगे तुम
अपने कर्ज
इन्हें चुकाए बिना
जीवन न होगा पूर्ण।
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