पथ के साथी

Monday, December 23, 2013

तुम दर्द नहीं हो

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा

मधुर-मधुर ये गाया करती ,
सुन्दर छंद सुनाया करती ।

तुम कान्हा हो तो मधुबन में ,
रसमय रास रचाया करती ।

शिवमय होकर पतित-पावनी ,
गंगा -सी बह जाया करती ।

राम ,रमा-पति कण्ठ लगाते ,
मुग्धा बहुत लजाया करती ।

चाहत थी जो तुम छू लेते ,
कलियों- सी महकाया करती ।

तुम बिन गीत-ग़ज़ल में कैसे ,
इतना रस बरसाया करती ।

अच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,

वरना कलम रुलाया करती ।

Wednesday, December 4, 2013

नवस्वर

ज्योत्स्ना प्रदीप, जलन्धर
  
श्रीमती विमल शर्मा
मैं
राधा न सही
मीरा न सही                                                
पर क्या मुझे तुम्हारे                            
वंशी-स्वर सुनने का
कुछ हक नहीं ?
तुम तो
बाँस के खोखलेपन को भी
भर देते हो।
छिद्रों को भी तो
स्वर देते हो।
फिर मैं
इतनी खोखली भी नहीं
आओ !
वेणु समझकर ही
अधरों से लगा लो
साँसें भरकर तो देखो
शायद, मुझमें भी
कोई नव-स्वर सुनाई दे।
-0-

कविता के साथ दी गई श्रीमती विमल शर्मा (ज्योत्स्ना प्रदीप की माताश्री) जी  की पेण्टिंग के लिए आभार !

Monday, December 2, 2013

'समय से मुठभेड़ का जनकवि शुभदर्शन- पुस्तक का लोकार्पण



'समय से मुठभेड़ का जनकवि शुभदर्शन- पुस्तक का लोकार्पण
जनकवि ही नहीं, संघर्ष के कवि है डा. शुभदर्शन : प्रो. नरेंद्र मोहन 

  
  अमृतसर। रविवार को प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि डा. शुभदर्शन के पाँच काव्य संग्रहों पर देश के 37 विद्वानों और आलोचकों के विचारों से संकलित 'समय से मुठभेड़ का जनकवि शुभदर्शन पुस्तक का विमोचन हुआ। जी.एन.डी.यू. के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डा. रमेश कुंतलमेघ की अध्यक्षता में विरसा विहार में आयोजित कार्यक्रम में देश के कई प्रसिद्ध साहित्यकारों ने डा. शुभ दर्शन को जहाँ हठीला कवि बताया, वहीं उनको ललित और पंजाब का कुँवर नारायण जैसे शब्दों से अलंकृत किया गया।
        
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेवानिवृत्त प्रो. नरेंद्र मोहन ने कहा कि आज के दौर में कविता लिखना काफी कठिन है। डा. शुभदर्शन जनकवि ही नहीं, बल्कि संघर्ष के कवि  है। सभी को उनकी तरह जूझने का मादा रखना चाहिए, लेकिन अफसोस यह खत्म होता जा रहा है।
      डा. रमेश कुंतलमेघ ने कहा कि साहित्य को शब्दों में न बाँधे। जब तक कल्चर नहीं होगा, साहित्य नहीं बनेगा।
 डा.शुभदर्शन आत्म दर्शन है। विशेष अतिथि डा. पांडे शशिभूषण शितांशु ने डा. शुभदर्शन को पंजाब का कुँवर नारायण बताया। रमेश सोनी ने कहा कि साहित्य को चापलूसों से बचना चाहिए। देवेन्द्र बहल ने कहा कि गुरु नगरी से पहली बार पुस्तक के प्रकाशन से उनको सुखद अनुभूति हुई है। डा. जगमोहन चोपड़ा तथा रजनी बाला ने भी प्रपत्र पढ़ा। कई सालों से साहित्य जगत में अपनी पहचान बना चुके डा. शुभदर्शन ने शब्दो के दायरे, लड़ाई खत्म नहीं हुई, संघर्ष जारी है, संघर्ष बस संघर्ष तथा संघर्ष ममता का नाम से पाँच काव्य संग्रहों की रचना की। इस पर देश के 37 से अधिक लेखकों, साहित्यकारों, विद्वानों और आलोचकों ने अपने विचारों को रखा। उन विचारों को इंदौर के रमेश सोनी ने संपादित किया, वहीं दिल्ली के सभ्य प्रकाशन के देवेन्द्र बहल ने उसको प्रकाशित किया। 

   कार्यक्रम में जालंधर से प्रो. नीलम जुल्का, प्रो. अरुणा शर्मा, पठानकोट से कहानीकार सैली बलजीत, जम्मू से प्रो. अशोक कुमार, तरनतारन से  रमेश चंदेल, अजनाला से मधु जेतली, लुधियाना से चाचा विरसा सिंह, डा. विनोद तनेजा, प्रसिद्ध कारोबारी सुरेंद्र मोहन मेहरा, होली हार्ट स्कूल की डायरेक्टर अंजना सेठ, अतुला भास्कर, प्रो. किरण, मीनाक्षी काला, इकबाल सिंह शैरी, सुधीर शर्मा, गोपाल चौधरी, संजय बेरी, गौरव शर्मा, कँवलजीत कौर, सुमित शर्मा आदि उपस्थित थे।

-कैप्शन फोटो
24ए.एस.आर.गाँधी7

Tuesday, November 26, 2013

आसमाँ में चाँद की तरह



 अनिता ललित
1
चढ़ो ... तो आसमाँ में चाँद की तरह....
कि आँखों में सबकी...बस सको...
ढलो... तो सागर में सूरज की तरह...
कि नज़र में सबकी टिक सको....!
2

काश लौट आए वो बचपन सुहाना...
बिन बात हँसना....
खिलखिलाना...
हर चोट पे जी भर के रोना.......!
3 

बनकर जियो ऐसी मुस्कान...
कि.. हर चेहरे पर खिलकर राज करो.. !
न बनना किसी की... आँख का आँसू..
कि गिर जाओ .. तो फिर उठ न सको...!
4

 दिल की मिट्टी थी नम...
जब तूने रक्खा पाँव...,
अब हस्ती मेरी पथरा गई..
बस! बाकी रहा .. तेरा निशाँ !
5
मुझे पढ़ो......
तो ज़रा सलीके से पढ़ना...
ज़ख़्मों के लहू से लिखी....
अरमानों की ताबीर हूँ मैं...!
-0-