सत्या
शर्मा ' कीर्ति '
हाँ , देखा है मैंने भी एक स्वप्न
किताबों
से भरी एक
आलमारी
हो
जिसके
जिल्दों पर
लिखे हों
मेरे नाम के अक्षर
अंदर
पन्नो पर सजे हों
जीवन -
मृत्यु के गीत
जीत -
हार के गीत
जिसमें
समाज का
संघर्ष भी हों
परिवर्तन
की उम्मीद भी हों
भविष्य
के सपने भी हों
कुछ मेरे
अपने भी हों
कुछ
रास्ते के पते भी हों
कुछ जीवन
के सन्देश भी हों
हाँ , देखा है मैंने भी
इक
खूबसूरत सपना
पर !
मेरी कविताओ !
क्या तुम
तैयार हो ?
क्या
शब्द बन रहे हैं सार्थक
क्या
लेखनी ले रही है करवट
हाँ , कविता आज तुम बोलो
मौन न
रहो
क्या
समाज को गति दे पाओगी तुम ?
क्या
विचारों की क्रांति ला पाओगी तुम ?
दे सकोगी
सूखे ओंठों पर खुशियाँ
हर सकोगी
व्यथित हृदय की पीड़ा
क्या
तख़्त के डर तो नहीं जाओगी
क्या
सच्चाई का दामन थाम आगे बढ़ पाओगी
बोलो
कविता यूँ मौन न रहो
यह वक्त
है परिवर्तन का
एक पुनर्जागरण
का
लेना
होगा तुम्हें भी
नया रूप
सिर्फ
बगीचों के बीच
नदियों
के बीच
पहाड़ों की तलहटी के नीचे
मत ढूँढना तुम गीत
देखो आँखों की
कोरों पर
ढलती बूँदों को
रास्ते
पर चलते नहीं थकते
पैरों को
बोलो
कविता तुम तैयार हो
मुझे संग्रह की जल्दी नहीं
मुझे तुम्हारा
साथ चाहिए
पन्नो
में नया इतिहास चाहिए
बदलाब की
बयार चाहिए।।
अब तो
बोलो कविता
क्या तुम
तैयार हो....???
12-
6 - 20