गाँव में क्या रखा है
सुरभि डागर
गाँव में रखा ही
क्या है
छुपा रखा है एक ज़माना
लोग कहते हैं गाँव में क्या रखा है
गाँव में मेरे बचपन की सुनहरी यादें
गर्मी में तारों की छाँव में लगी मच्छरदानी।
बिस्तर पर दादी विजना
डुलाती
साथ में सुनाती कहानी ।
सुनते-सुनते कहानी न जाने
मैं कब सो जाती।
रूठने पर माँ ,दादी मुझे मनाती
अपने हाथों से निवाला
खिलाती
उस वक्त को तलाशता मेरा
मन
लोग कहते हैं पुराने वक्त
में क्या रखा है
गाँव की मिट्टी में बसा है मेरा बचपन
लोग कहते हैं गाँव में क्या रखा है
घर से राह में झाँकते झरोखे ,
कहीं नीम की ठंडी हवा के
थे झोंके
चौपाल में होते थे दादा,ताऊ,चाचा
घर के मुखिया और काका।
कुओं से वहता ,वरहो में पानी
पेड़ों पर आम से भरी होती
डाली,
खेतों की छटा होती थी
निराली
पगडंडियों पर घूमती थी घसियारी
पुराने बक्सों को तलाशती
मेरीआँखे,
उन पुराने बक्सों में
बन्द है एक ज़माना।
लोग कहते हैं गाँव में क्या रखा है
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