पथ के साथी

Friday, November 11, 2022

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 डॉ. शिप्रा मिश्रा

भोजपुरी कविताएँ

1-हम मजूर हई

 


झंडा आ रैली हमार ना ह

ई गरजे के सैली हमार ना ह

 

आन्ही पानी में टूटल बा केतना मचान

जोरत चेतत भेंटाईल ना आटा पिसान

केतना रतिया बीतल पेट कपड़ा से बान्ह

छूंछे चिउड़े जुड़ाईल ई देहिया जवान

 

अब ई जोगिया के भेली हमार ना ह

ई झंडा आ रैली हमार ना ह

 

हमार जघे जमीनवें हेरा ग‌ईलें

एगो ब‌एला के जोड़ी बिका ग‌ईलें

करजा भरत ई एड़ियां खिया ग‌इलें

फिफकाली से मुँहवा झुरा ग‌ईलें

 

अब ई टूटही झपोली हमार ना ह

ई झंडा आ रैली हमार ना ह

 

हम त च‌ईतो में बिरहा के राग गावेनी

हम त जेठ के दुपहरी में फाग गावेनी

हम त चूअत छप्परवा के फेर उठावेनी

हम त करिया अन्हरिया में लुत लगावेनी

 

ई सवारथ के खेली हमार ना ह

ई झंडा आ रैली हमार ना ह

 

हमरा खेतवे अगोरे से साँस ना मिलल

हमरा दूबर मवेसी के घास ना मिलल

ए क‌उवन में हियरा कहियो ना खिलल

लबराई के बजार से जियरा ना जुड़ल

 

ई गोबरा के ढेली हमार ना ह

ई झंडा आ रैली हमार ना ह                    

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 2-दुखड़ा

 



ए मलकीनी अब त हमर मजूरिया छूटल

कथी-कथी दुखड़ा रोईं हमर भाग बा फूटल

 

घोठा-घारी छोड़-छाड़ पियवा ग‌ईलें परदेस

असरा ताके एन्हरी-गेन्हरी लईहें कौनो सन्देस

 

रहिया चलत घमवे-घमवे उनकर मुंहवां मुरझ‌ईलें 

पेट अईठे ख‌ईला-ख‌ईला बिनू ई जिनगी ओझर‌ईले

 

का कहीं आपन बिपतिया सगरी जहान बा रूठल

ए मलकीनी अब त हमर मजूरिया छूटल

 

प‌ईसा-क‌ऊड़ी दाना-पानी के मोहताज हो ग‌ईलें

तर-तर लहू बहत गोड़वा में पीरा केतना भ‌ईलें

 

भोटवा बेरी केतना-केतना मुफुत के माल खिअवलें

अब केहू पुछव‌या न‌ईखे जीयले कि मरी ग‌ईलें

 

याद परल अब बनीहारी के फेर ढेंकी के कूटल

ए मलकीनी अब त हमर मजूरिया छूटल

 

मुँवाँ चिरलें काहें बरह्मा जे ना पेटवा के जोरलें

हमनी अभागा क‌ईसे जीएम कौन खेत के कोड़ले

 

फिफकाली सगरो जवार में मिले ना लौना-लाठी 

माड़-भात पर आफत भ‌ईलें आज बिक‌ईलें पाठी

 

कहिया ले ई भार ढोवाई अब असरा ई टूटल

ए मलकीनी अब त हमर मजूरिया छूटल

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2-पूनम सैनी

हुनर

 

 


मरहम एक यही यादों के ज़ख्म पर

सीख लीजिए फ़क़त भूलने का हुनर

 

देख ले ना कही अक्स उसका कोई

पलकों से मूँद लूँ मैं अपनी नज़र 

 

सूनी सी सारी है गलियाँ यहाँ अब

छोड़ चल दीजिए अब तो उनका शहर

 

हमसे पूछे कोई रूदाद दिल की

गम से होता यहाँ धड़कनों का बसर

 

कब थमा कारवाँ जीवन का यहाँ पर

हो ही जाता सभी का अकेले गुज़र 

 

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