पथ के साथी

Thursday, July 26, 2018

832


1-डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1
अभिमंत्रित
मुग्ध-मुग्ध मन
मगन हो गई,
लो आज धरती
गगन हो गई ।
2
दूर क्षितिज में
करता वंदन
नभ नित
साँझ-सकारे
प्रतिपूजन में
धर कर दीप धरा भी
मिलती बाँह पसारे !
3
मौन भावों के
जब उन्होंने
अनुवाद कर दिए,
किसी ने भरा प्रेम
किसी ने उनमें
आँसू भर दिए।
4
तरंगायित है
आज वो
ऐसी तरंगों से
भर देगा जग को
प्यार भरे रंगों से 
-०-