पथ के साथी

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Tuesday, December 3, 2024

1441

 

माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी



1
खोलो मोखे मन के
धूप मुहब्बत की
आने दो छन- छनके।
2
दरवाज़ा खड़का है
शायद वो आए
मेरा दिल धड़का है।
3
होठों पे आह नहीं
तुम जब अपने हो
कोई परवाह नहीं।
4
तुमको जिस पल पाया
हर इक मुश्किल का
मैंने तो हल पाया।
5
हर रोज सँवरने दो
मन में चाहत का
अहसास न मरने दो।
6
तेरे ही पास मुझे
हरदम रखता है
तेरा अहसास मुझे।
7
बोले ये दिल धक से
मुझको अपना तुम
कहते हो जब हक़ से।
8
जीवन को सींच रही
मीत मुहब्बत ये
जो अपने बीच रही।
9
वो पास नहीं होता
मुझको जीने का
आभास नहीं होता।
10
तुम मुझको गैरों में
हरगिज़ ना गिनना
पड़ती हूँ पैरों में।

-0-

Sunday, October 13, 2024

1436

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1


मुट्ठी से सरक रहे

रेत सरीखे अब

रिश्ते यों दरक रहे।

2

आँसू की धार बही

हमको रिश्तों की

जब भी दरकार रही।

3

फिर नींद नहीं आई

हमने जब जानी

रिश्तों की सच्चाई।

4

बनकर तेरे अपने

लोग दिखाएँगे

केवल झूठे सपने।

5

किसका मन पिघल रहा?

इंसाँ ही अब तो

इंसाँ को निगल रहा!

6

जग से कुछ ना कहना

जग है सौदाई

चुपके हर गम सहना।

7

देखा तुमने मुड़के

जाते वक्त हमें

हम जाने क्यों हुड़के।

8

दो दिन का मेला है

जीवन बेशक पर

हर वक्त झमेला है।

9

घबराता अब दिल है

रिश्ते- नातों से

हमको यह हासिल है।

-0-

Saturday, September 5, 2020

1027-शिक्षक -दिवस पर विशेष

 

ज्योत्स्ना प्रदीप 

1


जब घोर-अँधेरा है

गुरुवर साथ रहे 

फिर भोर-सवेरा है 

 2

तपकर संतोषी हैं   

जो  उनको दुख दे 

वो घातक  दोषी हैं !

3

तन तो बस माटी है ।

ज्ञान -बीज  भरते 

हरियाली बाँटी  है ।

4

जीवन घन-काला हैं ।

दिनकर मन कर दे 

गुरु ज्ञान -उजाला हैं ।

5

गुरुवर को हम पूजें ।

गुरु का  मान  करो

छोड़ो  झगड़े दूजे ।

6

जीवन में  तम छा

दिनकर -गुरुवर से 

किरणें हम तक आएँ

7

बाकी सब कुछ भूलें ।

पाँवो के संग-संग 

मन उनका हम छू लें !

8

पथ उनके ही चलना ।

मान करो मन से 

उनको न कभी छलना ।

9

वो वतन सदा ऊँचा ।

गुरुवर  मान करें 

महके फिर हर कूँचा !

10

बस पतन वहीं होता ।

गुरुवर को दुख दे 

वो हरपल ही रोता !

Wednesday, April 11, 2018

815


1-डॅा.ज्योत्स्ना शर्मा
1
तुमसे उजियारा है
गीत मधुर होगा
जब मुखड़ा प्यारा है।
2
चन्दन है, पानी है
शीतल, पावन -सी
 तस्वीर बनानी है।
3
कुछ नेह भरा रख दो
मन के मन्दिर में
तुम धूप जरा रख दो ।
-0-
मचल रही घनघोर घटा सी नेह सुधा बरसाने को ।
पिहुँ प्यासे चातक बन आना मन मेरा बहलाने को।

हुआ बावरा मन बंजारा दहक रहा मन बंजर है ।
मन आहत चाहत में तेरी व्याकुलता का मंज़र है
पल दो पल को ही आजाते यूँ ही तुम भरमाने को
पिहुँ प्यासे चातक बन आना मन मेरा बहलाने को।

प्रणय-ग्रन्थ नयनो में मेरे खुद नयनों में पढ़ लेना
लेकर अलिंगन मे मुझको खुद को मुझ में गढ़ लेना ।
प्रीति-महक पुरवाई लाई जग सारा महकाने को।
पिहुँ प्यासे चातक बन आना मन मेरा बहलाने को। 

मैंने सार लिया है साजन खंजन से नैनों अंजन।
आकर देखो खुद में सिमटी अनहद प्रियतम की "गुंजन"
ये जीवन अनबूझ पहेली आजाओ सुलझाने को ।
पिहुँ प्यासे चातक बन आना मन मेरा बहलाने को।
अनहद गुंजन 

Saturday, January 27, 2018

794


1- कुण्डलिया
ज्योत्स्ना प्रदीप

सरहद के उस पार पर ,बड़ा अजब है फाग ।
होली खेले रात दिन ,मन में लेकर आग।।
मन में लेकर आग ,बहा रंग अनूठे।
छ्लनी बैरी-देह, वतन की खुशियाँ लूटे ।।
विजय घोष के संग ,मात का दिल है गदगद।
लिखती है नव गीत ,हमारी प्यारी 'सरहद' ।।
-0-
2-हरियाणा साहित्य अकादमी-परिष्कार  कार्यशाला के विद्यार्थी
1-पूनम
1
दरमियाँ सब ही दिलों के, फ़ासले से है कई,
सत्य है सदियों पुराना, बात ना कोई नई,
प्रश्न है अब एकता का, और ना कोई भी जवाब,
माँगता है वक्त हमसे, गुज़रे लम्हों का हिसाब।

था कभी ऐसा ज़मी पर, धर्म था ना जात थी,
प्रेम ही था एक नारा, साथ की ही बात थी,
प्रेम ही इक मूल था, ना विद्वत्ता का था नकाब
माँगता है वक्त हमसे.....

टूटती- सी जा रही, विश्वास की अब हर कड़ी,
बढ़ रहा है भेद ही, अब इस ज़मी पर हर घड़ी,
ना रही इंसान में, इंसानियत की कोई आब
माँगता है वक्त हमसे.....

चाहतों की भीड़ में ही, छिप गई खामोशियाँ,
जिस्म में ही दब गई है, रूह की अब सिसकियाँ,
बह रहा तन्हाइयों का, अब यहाँ रग में सैलाब,
माँगता है वक्त हमसे.....

हम चले जो खुद को फिर, वक्त भी दोहराएगा,
मोतियों की माल सा, राष्ट्र ये बंध जाएगा
नहीं रहेगा धड़कनों पे, दासता का अब हिजाब
माँगता है वक्त हमसे.....

-0-648/2 दयाल सिंह कॉलोनी, नज़दीक अलमारी फैक्टरी, सिसाय रोड़, हांसी- 125033-0-
-0-
2-माहिया-राहुल लोहट
1
माला क्यों जपता है
मन्दिर ना मालिक
वो तन में बसता है।
2
महफिल खिल जाएगी
चलकर तो देखो
मंजिल मिल जाएगी।
3
ना धन ना माया में
सुख बस मिलता है
अपनों की छाया में।
4
वो बात निराली है
अपने बचपन की
सौगात निराली है।
5
अब सुख की बारी है
हिम्मत के आगे
हर मुश्किल हारी है।
6
दु:ख सुख में ढलता है
रात अगर है तो
दीपक भी जलता है।
7
भँवरे जैसे जीना
खींच रिवाजों से
मानवता रस पीना।
8
तुम मान कहो इनको
बेटी है बेटी
मत दान कहो इनको।
9
खुशबू में खोया हूँ
धरती माता के
कदमों में सोया हूँ।
10
माटी ये चन्दन है
मेरी धरती माँ
चरणों में वन्दन है।
-0- राहुल लोहट
गांव -खरड़वाल,तहसील-नरवाना ,जिला -जीन्द
Email--wrrahulkumar@gmail.com

Wednesday, July 17, 2013

आँखें क्यों गीली हैं

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
अब घोर अँधेरा है
क्यों रोता साथी
नज़दीक सवेरा है  ।
2
राहें पथरीली हैं
आगे जब बढ़ना
आँखें क्यों गीली हैं ।
3
अन्धड़ भी आएँगे
जो चाहे चलना
वे रोक न पाएँगे ।
4
ताण्डव  जब होता है
बचता कौन भला
बादल जब रोता है ।
5
कुछ ऐसे जतन करो
घाव पहाड़ों के
मिलकर सब लोग भरो ।
6
पेड़ों की हरियाली
लूटे  ना कोई
टूटे  ना इक डाली ।
7
कुछ जान न पाओगे
दु:ख जब पूछोगे
चोटें ही खाओगे ।
8
कितने भी जतन करें
वाणी नीम पगी
कड़वे ही वचन झरे ।
9
सीमा है कहने की
तार-तार टूटी
हिम्मत भी सहने की ।
10
बातों की चोट बड़ी
काँटा तो निकले
निकले कब कील गड़ी ।

-0-

Sunday, June 23, 2013

रिश्तों की चादर

भावना कुँअर
1
थे पंख उधार लिये
ख़्वाबों की ज़िद में
बादल भी पार किये ।
 2
तुमसे बातें करना
पाया है  मैंने 
अमृत -भरा ये  झरना।
3
हरदम गहरे  चुभते
काँटों में उलझे
दिल चीरें ये रिश्ते।
4
बचपन को खोया है
बीज अमानुष बन
किसने ये बोया है?
5
कैसी मजबूरी है
रिश्तों की चादर
होती ना पूरी  है।
-0-

Tuesday, February 12, 2013

अहसान किए इतने


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
हमसे क्या आज मिले
जग के उपवन में
हम सातों जनम खिले ।
2
काँटों ने घेरा तन
अपनों ने कुचला
फूलों -सा कोमल मन ।
3
हर साँस लगे पहरे
घुटता दम मेरा
तुम भी निर्दय ठहरे ।
4
अहसान किए इतने
नीले अम्बर में
तारे चमके जितने ।
5
तुम मेरी पूजा हो
तुमसे भी प्यारा
कोई ना दूजा हो ।
6
तुम सब दु:ख जानो हो
दिल में दर्द उठे
तुम ही पहचानो हो ।
-0-