पथ के साथी

Sunday, March 6, 2011

ये निर्मम शहर


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु
1
अश्रु का घर
ये निर्मम शहर
मत ठहर ।
2
मानव कम
धनपशु अधिक
बाँटें ज़हर ।
3
धूल बरसे
खुश ताज़ा हवा को
प्राण तरसें
4
बादलों से न
बरसता है जल
अम्ल बरसे
5
बिखरा विष
रसायनों का यहाँ
बना कहर ।
6
बाँझ धरती
यहाँ दम तोड़ती
रोज़ मरती
7
घूमे कुरूप
बेहया नग्न भूप
आठों पहर
8
मरे गरीब
भूख से या कर्ज़ से
हुए बेघर
9
नभ ऊपर
फुटपाथ बिस्तर
गुम ईश्वर
10
चौराहों पर
घूमता साँड जैसा
बेख़ौफ़ डर
11
घूमे दलाल
जो जहाँ मिल जाए
करें हलाल
12
दुराचार ही
 इनका युग-धर्म
जीवन-सार
13
नारी-शरीर
भेड़ियों की भूख से
घायल हुए
14
आँसुओं -भरी
कोठरियाँ तड़पें
जाएँ भी कहाँ ?