1-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मैं तेरे मन में रहूँ, जैसे तन में साँस।
जब तक ये जीवन रहे, रखना अपने पास।
2
तेरे नैनों में रहूँ , बनकर गीली कोर।
पलकें चूमूँ प्यार से, बनकर उजली
भोर।।
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2-माटी
और मन / डॉ . महिमा श्रीवास्तव
माटी सी देह
माना
माटी में
मिल जानी है
कनपटी पर
सफेदी,
आँखों के
नीचे स्याही
फीकी
होती रंगत
मरालग्रीवा
पर सिलवटें।
बसन्त जीवन से
विदा हो
चुका है
पर इस मन
का क्या
ये तो
सावन में अब भी
गुनगुनाता
है बारहमासी
विरह का रंग
उतरा ही
नहीं
मिलन का रंग
कभी चढा
नहीं।
कुलाँचे
भरता मन
कभी बचपन
की
उजली
हँसी बिखेरता
तो कभी
किशोर- सा
मचल उठता
बेकाबू।
लिखता
मिटाता संदेश
झिझकते
तारुण्य सा
शरीर समय
की मार से
बिखरता
दर्पण निहार
मन हँस- हँस -के
झेलता
उम्र
ढलने के प्रहार।
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2-साँवरे के रंग / पूनम सैनी
मैं साँवरे के रंग राची होके बाँवरिया
मैं
साँवरे के संग नाची,पहनी पायलिया
घिर-घिर
आए मेघा चमकी बिजुरिया
मैं
साँवरे के संग नाची,पहनी पायलिया
पेड़,पशु झूमे सारे ताल-तलैया
मैं
साँवरे के संग नाची,पहनी पायलिया
सज-धज
नाथ शम्भू,नाचे ता
थैया
मैं
साँवरे के संग नाची,पहनी पायलिया
गोपियाँ
चकोर भई, चाँद साँवरिया
मैं
साँवरे के संग नाची,पहनी पायलिया
नाग
नथैया मोहन,मुरली बजैया
मैं
साँवरे के संग नाची,पहनी पायलिया
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