पथ के साथी

Thursday, June 6, 2019

906-विश्व पर्यावरण दिवस


 चिन्तन –मंथन 

       शशि पाधा
    
गाँव- गाँव अब शहर हुए
दरिया सिमटे नहर हुए
 सागर- चिन्ता घोर
 न जाने क्या होगा

खुली छत,तारों से बातें
घुली चाँदनी,झिलमिल रातें
 रह गई दूर  की दौड़
 न जाने क्या होगा !

सूरज का रथ स्वर्ण- जड़ा
दूर सड़क के मोड़ खड़ा
खिड़की बैठी भोर
न जाने क्या होगा !

गोधूलि अब धूल-भरी
छाया :रोहित  काम्बोज 
बगिया क्यारी शूल -भरी
उड़ता फिरता शोर
 न जाने क्या होगा !!

जंगल सब बियाबान हुए
पंछी सब परेशान हुए
कहाँ पे नाचें मोर 
न जाने क्या होगा !!

ताल तलैया सूखे-से 
बरगद बाबा रूखे- से 
भूखे -प्यासे ढोर

न जाने क्या होगा !!