पथ के साथी

Wednesday, October 1, 2008

मेरी पसन्द


मेरी पसन्द
प्रस्तुति-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

अर्ज़े-नियाज़े इश्क के काबिल नहीं रहा ।
जिस दिल पे हमको नाज़ था वो दिल नहीं रहा॥
-ग़ालिब
हममें ही थी न कोई बात याद न तुमको आ सके ।
तुमने हमें भुला दिया ,हम न तुम्हें भुला सके ॥
-हफ़ीज़
सब कुछ ख़ुदा से माँग लिया तुझको माँगकर।
उठते नहीं हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद ॥
-आगा हश्र
ऐ शम्अ!सुबह होती है ,रोती है किसलिए ।
थोड़ी सी रह गई है ,इसे भी गुज़ार दे ॥
-आगाजान 'ऐश'
काँटा समझके न मुझसे दामन बचाइए ।
गुज़री हुई बहार की इक यादगार हूँ ॥
-मशीर
हमें भी याद रखें जब लिखें तारीख़ गुलशन की ।
कि हमने भी लुटाया है चमन में आँशियाँ अपना ॥
-अजीज़
सहारा न देती अगर मौज़े-तूफ़ां।
डुबो ही दिया था हमें नाखुदा ने ॥
मकीन अहसन
जिसने इस दौर के इंसाँ किए हैं पैदा ।
वो मेरा भी ख़ुदा हो मुझे मंजूर नहीं॥
-हफ़ीज़
बन्दे न होंगे जितने ख़ुदा है ख़ुदाई में ।
किस किस ख़ुदा के सामने सिज़दा करे कोई॥
-यास यगाना चंगेज़ी
दिल है क़दमों पर  किसी के सर झुका हो या न हो।
बन्दग़ी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो ॥
-जिग़र
मरने की दुआएँ क्यों माँगू ,जीने की तमन्ना कौन करे ।
ये दुनिया हो या वो दुनिया अब ख़्वाहिशे दुनिया कौन करे ॥
-जज़्बी