खून ही पीते रहे ये खून के रिश्ते ।
सदा ही रीते रहे ये खून के रिश्ते ॥
जोंक भी जीती सदा सबको पता कैसे ।
इसी तरह जीते रहे ये खून के रिश्ते ॥
घाव जो खाए भला कब ठीक वे होते ।
शूल से सीते रहे ये खून के रिश्ते ॥
वे समझते हैं हमें रोना नहीं आता ।
अश्क में बीते रहे ये खून के रिश्ते ॥
-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'