मंजु मिश्रा
सरहदों पर यह लड़ाई
न जाने कब ख़त्म होगी
क्यों नहीं जान पाते लोग
कि इन हमलों में सरकारें नहीं
परिवार तबाह होते हैं
कितनों का प्रेम
उजड़ गया आज
ऐन प्रेम के त्योहार के दिन
जिस प्रिय को कहना था
प्यार से ‘हैप्पी वैलेंटाइन’
उसी को सदा के लिए खो दिया
एक खूँरेज़ पागलपन और
वहशत के हाथों
अरे भाई!
कुछ मसले हल करने हैं
तो आओ न...
इंसानों की तरह
बैठें और बात करें
सुलझाएँ साथ मिलकर
लेकिन नहीं, तुम्हें तो बस
हैवानियत ही दिखानी है
तुम्हें इंसानियत से क्या वास्ता
तुमने तो चुन ही लिया है
दहशत का रास्ता ....
तुम्हारी मंज़िल तो केवल तबाही है।
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मंजु मिश्रा
#510-376-8175
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