जब मैं तुम्हारी उँगली थामूँ
सुशीला
शील राणा
जीवन सागर में
कभी थिर पानी
तो कभी
भयंकर झंझावातों में
तुम्हें रखा बचाए
सदा छाती से लगाए
कि नहीं झुलसाए तुम्हें
ज़रा भी तपती धूप
जलती लू की आँच
जब कभी
विपदाओं के तूफ़ानों में
डगमगाई परिवार की नैया
भींच लिया है तुम्हें
मेरी मज़बूत बाँहों ने
अपने सुरक्षा घेरे में
जीवन सागर के
अनंत विस्तार में
जब भी रखे हैं तुमने
बाहर अपने कदम
मेरी निगाहों के
सी सी टी वी कैमरे
करते रहे हैं तुम्हारा पीछा
कि कोई वहशी नज़र
कर न ले तुम्हारा शिकार
मुझे
ख़ुद से ज्यादा
रही है तुम्हारी फ़िक्र
ज़िंदगी भर
जीवन सागर के
तट पर पहुँचते-पहुँचते
कई बार गिरी-उठी
टूटी-जुड़ी
लहूलुहान हुई
थक के चूर हुई
जीवन की
गोधूलि बेला में
लड़खड़ाते भरोसे
डगमगाते कदमों के साथ
जब मैं तुम्हारी उँगली थामूँ
तो मेरी आत्मजा
तुम हो जाना 'मैं'
थाम लेना मेरा हाथ
बुढ़ापे को दे देना
जवानी का सहारा
लौट जाऊँगी मैं
तुम्हारे बचपन में
तुम-सी होकर
तुम हो जाना मुझ-सी
और इस तरह
लौट आएँगे फिर
हम दोनों की ज़िंदगियों के
सबसे ख़ूबसूरत दिन