डॉ हृदय नारायण उपाध्याय
1-अभिलाषाएँ
चाहूँगा
मैं फूलों से बन पराग बिछ जाना,
कलियों
से थिरकन को लेकर पत्तों सा हिल जाना ।
बढ़ता
जाऊँ नीलगगन में, मन की यह अभिलाषा,
माटी
से जुड़कर पूरी हों, मन की सारी आशा।
पतझड़
और तपन आकर भी, गीत ऐसा गा जाए,
स्वर
कोयल का गीत मीत का, जीवन-राग सुनाए।
कांटे
समझ भले ही अपने, अंत समय तज जाएँ,
फिर
भी सबके रक्षा की, अभिलाषाएँ मिट ना पाएँ।
[आकाशवाणी अम्बिकापुर छतीसगढ़ से प्रसारित
कविताएँ]
2-कोशिश
मेरी
कोशिश है –
शब्द
अब नए अर्थों से सँवर जाएँ,
लोग
विध्वंस, चीख, धोखा और विवशता के अर्थ भूलकर
निर्माण,
हँसी, विश्वास और सहजता की चर्चा करें।
मेरे
कोशिश है –
लोंगों
के मुख से आशीष निकले,
कबीर
का जीवन जीकर, लोग मीरा सा प्रेम करें।
लोगों
में ईसा-सी सेवा की चाह हो,
मानवता
की खातिर चाहे सलीबों की राह हो।
मेरे
कोशिश है –
बची
रहे झरनों की शीतलता और नदियों की लहरें,
चौपायों
के मधुवन और शिशुओं की किलकन ।
शांति
के कुटीर हों, सुखद समीर हो।
स्वार्थों
से परे रहकर स्वभाव से अमीर हों ।
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