पथ के साथी

Monday, October 12, 2015

ज़िन्दगी



1-सात पन्ने- प्रकृति दोशी
(प्रकृति दोशी-मंजूषा मन की पुत्री है। यह कविता 5 साल पहले लिखी गई थी, जब प्रकृति की अवस्था  11 वर्ष थी)

ज़िन्दगी के सात पन्नों पर
एक छोटा- सा शब्द खो गया।

बचपन ने ढूँढा पहले पन्ने पर
शुरुआत ने ढूँढा दूसरे पन्ने पर
दोनों हुए नाकाम
फिर....
डर ने कहा - क्यों न हम
मिलजुल कर ढूँढे
और काम शुरू हुआ।
पर छठे पन्ने तक पहुँचने पर
सब थक गए।
लेकिन;
मेहनत अपने दोस्त साहस को लेकर
सातवें पन्ने पर पहुँची
उन दोनों ने
सबसे पहले ढूँढ लिया
उस शब्द को जो है ज़रूरी
और वो शब्द है-
मौत   
एक ऐसा शब्द
जो तब लिखा जाना है
जब
ज़िन्दगी का अंत  होता है।
-0-
 2-दोहे प्रीत भरे

शशि पाधा
1

ख़ता हुई यह पूछकर, कैसे आप जनाब

रोज़-रोज़ मिलने लगे, ख़त में फूल गुलाब |

2

प्रेम रंग ऐसा चढ़ा, छुड़ा गयी मैं हार

मरने की न चाह हुई, जीना भी दुश्वार |

3

प्रेम रोग की औषधि, मिलती है किस गाँव

नगर-डगर खोजा-थकी, ढूँढ न पायी ठाँव |

4

दोपहरी की धूप में, छत पर जलते पाँव

सूरत तेरी देख ली, पायी शीतल छाँव |

5

पंख बाँध मन प्रीत के, जाऊँ अम्बर पार

जिन गलियों में तू बसे, बसा वहीं संसार ||

6

बिन पाती, संदेश बिन, बिन शब्दों की डोर

उड़ी प्रीत की ओढ़नी, नैना थामे छोर |

7

बगिया में डोले फिरे, मालिन चुनती फूल

माली चुनता हर घड़ी, बिखरे पैने शूल |

8

ना मैं पर्वत जा चढ़ी, ना जोगन का वे

मेरी कुटिया है वहाँ, तू बसता जिस देश |

9

मीरा राधा जब मिलीं, मथुरा में इक रात

इक दूजे को भेंट की, बंसी की सौगात|

10

कोरे कागज़ में भरी, अक्षर- अक्षर प्रीत

दो नयनों की तूलिका, रंग भरे मनमीत |



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