1-सात पन्ने- प्रकृति दोशी
(प्रकृति दोशी-मंजूषा ‘मन’ की पुत्री है। यह कविता 5 साल पहले
लिखी गई थी, जब प्रकृति की अवस्था 11 वर्ष
थी)
ज़िन्दगी के सात पन्नों पर
एक छोटा- सा शब्द खो गया।
बचपन ने ढूँढा पहले
पन्ने पर
शुरुआत ने ढूँढा दूसरे
पन्ने पर
दोनों हुए नाकाम
फिर....
डर ने कहा - क्यों न
हम
मिलजुल कर ढूँढे
और काम शुरू हुआ।
पर छठे पन्ने तक पहुँचने पर
सब थक गए।
लेकिन;
मेहनत अपने दोस्त साहस को लेकर
सातवें पन्ने पर पहुँची
उन दोनों ने
सबसे पहले ढूँढ लिया
उस शब्द को जो है ज़रूरी
और वो शब्द है-
मौत
एक ऐसा शब्द
जो तब लिखा जाना है
जब
ज़िन्दगी का अंत होता है।
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2-दोहे –प्रीत भरे
शशि पाधा
1
ख़ता हुई यह पूछकर, कैसे आप जनाब
रोज़-रोज़ मिलने लगे, ख़त में फूल गुलाब |
2
प्रेम रंग ऐसा चढ़ा, छुड़ा गयी मैं हार
मरने की न चाह हुई, जीना भी दुश्वार |
3
प्रेम रोग की औषधि, मिलती है किस गाँव
नगर-डगर खोजा-थकी, ढूँढ न पायी ठाँव |
4
दोपहरी की धूप में, छत पर जलते पाँव
सूरत तेरी देख ली, पायी शीतल छाँव |
5
पंख बाँध मन प्रीत के, जाऊँ अम्बर पार
जिन गलियों में तू बसे, बसा वहीं संसार ||
6
बिन पाती, संदेश बिन, बिन शब्दों की डोर
उड़ी प्रीत की ओढ़नी, नैना थामे छोर |
7
बगिया में डोले फिरे, मालिन चुनती फूल
माली चुनता हर घड़ी, बिखरे पैने शूल |
8
ना मैं पर्वत जा चढ़ी, ना जोगन का वेश
मेरी कुटिया है वहाँ, तू बसता जिस देश |
9
मीरा राधा जब मिलीं, मथुरा में इक रात
इक दूजे को भेंट की, बंसी की सौगात|
10
कोरे कागज़ में भरी, अक्षर- अक्षर प्रीत
दो नयनों की तूलिका, रंग भरे मनमीत |
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