पथ के साथी

Wednesday, August 7, 2019

921-रघुबीर शर्मा के दो नवगीत

1-हर चौराहा पानीपत है

इस बस्ती में
नई-नई
घटनाएँ होती है।

हर गलियारे में दहशत है
हर  चौराहा पानीपत है
घर, आँगन, देहरी, दरवाज़े
भीतों के ऊँचे पर्वत हैं
संवादों में
युद्धों की भाषाएँ होती हैं।

झुलसी तुलसी अपनेपन की
गंध विषैली चन्दनवन की
गीतों पर पहरे बैठे हैं
कौन सुनेगा अपने मन की
अंधे हाथों में
रथ की
वल्गाएँ होती हैं।
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2- अपना आकाश

नम आँखों से 
देख रहे हैं 
हम अपना आकाश। 

देख रहे हैं बूँदहीन
बादल की आवाजाही। 
शातिर हुई हवाओं की
नित बढ़ती तानाशाही।। 
       खुशगवार
       मौसम भी बदले
       लगते बहुत उदास। 

टुकड़े-टुकड़े धूप बाँटते 
किरणों के सौदागर। 
आश्वासन की जलकुंभी से 
सूख रहे हैं पोखर।। 

    उर्वर वसुधा के भी 
      निष्फल 
    हुए सभी  प्रयास।।
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