1-चुम्बन का वरदान/ रश्मि विभा त्रिपाठी
पलकों के
झुरमुट से
एकाकीपन के सूरज की किरन
कभी चमकी
कभी बीते पल की
हवा चली
कभी न सुहाई
कभी लगी भली
दर्द का बादल
छा गया अगले पल
आँखों के आसमान से
आँसू की एक बूँद
कभी
गालों की छत पे
गिरी टप से
ज्यों चुम्बन का वरदान मिला
प्रेम के कठिन तप से
उस बूँद को
पीता रहा
जीता रहा मन का चातक
हुई धक-धक
आज भी
सोच के सहन में लगे
देह के पेड़ की टहनी पर
बहुत देर से बैठा
यादों का पंछी
उड़ गया
काँप गई
रोम- रोम की पत्ती
धमनी में
उठा है ज्वार- भाटा
बेबसी की बाढ़ में
डूबती
साँस छटपटाई है
छाती की धरती डोली है
हर मौसम में
तुम्हारी अनुभूति की कोयलिया
आत्मा की अमराई में
बोली है।
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2-बाहों के बिस्तर पर — रश्मि विभा त्रिपाठी
थकन से चूर
तुम्हारी बाहों के
बिस्तर पर
जिस दिन सोई थी
कुछ पल के लिए
तुम्हारे प्यार की पाकीज़गी की
मलमली चादर ओढ़के
उस पल से लेकर
अब तक
तुम्हारे ख़्वाब
जो देखे हैं मैंने
ओ मेरे अहबाब
इन्हीं से मेरी ज़िन्दगी में
बरकत है
कोई फर्क नहीं
कि अब उम्र भर
न रहे पास
नींद का असबाब
तुम मिल गए
मुझको मिल गया शबाब।
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3-क्षणिका— रश्मि विभा त्रिपाठी
1
ये मुहब्बत नहीं
तो फ़िर आप ही कहिए
इसे क्या मानते हैं,
हम रू- ब- रू कभी न हुए
मगर सदियों से
इक दूसरे को जानते हैं!
2
आज खुशियों पे
बंदिश नहीं है
क्योंकि
अब दुख से
मेरी रंजिश नहीं है।
3
मेरी ज़िन्दगी का दीया
बुझाने का है जमाने का पेशा,
नहीं मालूम मैं रश्मि हूँ,
सूरज मेरे पीछे चलता है हमेशा।
4
मायूसी की धूप
या दर्द की बरसात में
दिन- रात मैं
रखती हूँ अपने पास
उम्मीद का छाता
आँखें भीगती नहीं,
मन जल नहीं पाता।
5
ज़िन्दगी के खेत में
पिछली बार बो दिए थे
उम्मीद के बीज
फसल काटकर
साफ कर
छानकर
फटककर
भर दिया कुठला
इस बरस की रोटी का
हल हो गया मसला।
6
होठों पे खिल उठीं
कलियाँ तबस्सुम की नई,
तुम आए
तो ज़िंदगी के सहरा में
बहार आ गई!
7
तेरी याद का सूरज
दिल के फ़लक से
कभी भी ढला नहीं
कहने को दूर हैं हम,
हमारे दरमियान
कोई फासला नहीं!
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