रामेश्वर
काम्बोज ‘हिमांशु'
तुला
के एक पलड़े पर रखा मैंने-
अपना
सारा छलकता प्यार
ओस
की बूँदों-सा निर्मल
स्नेहआत्मीयता
में लिपटे सारे रंग
भावों
के सारे इन्द्रधनुष
कभी
न मिलने की सारी व्याकुलता,
मन-आँगन छूते सारे स्पर्श;
दूसरे
पलड़े पर तुम थे,
सिर्फ़
तुम…।
फिर
भी तुम ही भारी थे
तुम्हारा
अन्तर्मन इतना स्नेहसिक्त था
कि
तुम ही भारी रहे!
-0-