पथ के साथी
Sunday, January 29, 2012
मन की चोट
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
मन की चोट नहीं भर पाती
मिलना तो होता दो पल का
बिछुड़ें ,यादें रोज़ रुलाती।
मज़बूरी- दूरी दोनों में
युगों-युगों तक का नाता है
दोनों ने मिलकर बाँधा जो
मोहपाश टूट न पाता है ।
जब दिन -रात बिछुड़ जाते हैं
हर आँख सभी की भर आती ।
तन की चोट भरे कुछ दिन में
मन की चोट नहीं भर पाती ।
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