रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
ज़हर मत जाति का बाँटो
ये हवा विषैली होगी ।
नफ़रत के दमघोंट धुएँ से
धरती मैली होगी।
आग लगाने
वाले हाथों
निर्माण
नहीं होता ।
मुस्कान
छीनने से जग में
कल्याण
नहीं होता ।
इतिहासों के उजले पन्ने
कर बैठौगे काले ।
लड़वाकरके मौज करेंगे
आग लगाने वाले ।
मज़हब
के चंगुल से निकले,
उन्हें
जाति बाँट रही ।
प्यार
मिटाकर नफ़रत की ही
अब फ़सलें
काट रही ।
चेहरों पर डर लिख देने से
कुछ नहीं पाओगे ।
अपने हाथ काटकर कैसे
क़िस्मत लिख पाओगे .
रहो
प्रेम से सब मिल-जुलके,
यह डोर
नहीं तोड़ो
अनजाने
जो धागे टूटे
उनको
फिर जोड़ो ।
-0-(7 मार्च,
2016)