पथ के साथी

Thursday, February 4, 2016

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1-मंजूषा 'मन'
1
जीवन भर तो हम रहे, धारण करके मौन।
मेरे मन की बात फिर, बोलो सुनता कौन।
2
मन ये नाजुक है बड़ा, रखना बहुत सँभाल।
खुशियों से मन खिल गया, पूछ लिया जो हाल।
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2-अनिता मंडा
1.
अनसुलझे ही छोड़कर, पीछे कठिन सवाल।
अर्थ भरी मुस्कान ले, बीत गया ये साल।।
2
हे मातु कमलवासिनी,  देना ये वरदान।
नित चरणों में सिर झुके, दूर रहे अभिमान।।
3
झुलसा रही समाज को, ये दहेज की आग।
भस्म हुए सुख-चैन सब, मानव अब तो जाग।।
4
माता का पूजन करे, माँग-माँग वरदान।
कन्या की हत्या करे, कैसा वह इंसान।।
5
खारा खुद को सोचकर, सागर है मगरूर।
उसको मेरी राय है, देखे अश्रु जरूर।।
6
नदिया ये थक-हारकर, चाहे थोड़ा नेह।
सागर के आगोश में, ढूँढ रही निज गेह।।
7
आसमान को छू लिया, रही डोर के संग।
बंधन टूटा डोर का, पाई न उड़ पतंग।।
8
आसमान को छू लिया, रही संग में डोर।
बंधन टूटा डोर का,चली धरा की ओर।।
9
एक बला की सादगी, दूजे चंचल नैन।
दोनों मिलकर लूटते, कर देते बेचैन।।
10
प्रीत निभाओ साँवरा, सुन लो करुण पुकार।
हाथ थामकर अब करो, भव -सागर से पार।।
11
बरसाती अल्हड़ नदी, सिंधु  धीर गम्भीर।
बहती आई दूर से, लेकर मीठा नीर।।
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Anitamandasid@gmail. com
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बसंत के दोहे- कमल कपूर
1
पीली पगड़ी पहन कर,आये हैं ऋतुराज।
बहुत दिनों तक जगत में,करने को यह राज।।
2
महके महुआ माधवी,चमके चटक पलास।
सुरभि की गगरी ले कर,आ पहुचे मधुमास।।
3
हरी हरी दरियाँ बिछी,वर करें आराम।
फूलों ने आवाज दी,आओ तज बिसराम।।
4
लो कोकिल भी छेड़ता,,कुहू कुहू का राग
पुष्प पलाश दहक रहा,ज्यों जंगल की आग।।
5
बसंत पर्व न पूर्ण हो,बिन पूजा त्योहार।
अर्पण करते हैं तुझे,हम आखर के हार।।
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कमल कपूर,२१४४/९सेक्टर,फरीदाबाद१२१००६,हरियाणा
०९८७३९६७४५५