[अपनापन कई बार शब्दों की पहुँच से परे हो जाता है, तो चुप्पी में बदल
जाता है । अपने दर्द की खुद को जब आदत- सी हो जाती है तो लगता है इसको यहीं छुपा लो ,बिखर गया तो ज्यादा
टीस देगा । इसी विषय पर
आज सहज सहित्य में डॉ हरदीप सन्धु के हाइकु का गुलदस्ता ,आप सबकी भेंट]