[अपनापन कई बार शब्दों की पहुँच से परे हो जाता है, तो चुप्पी में बदल
जाता है । अपने दर्द की खुद को जब आदत- सी हो जाती है तो लगता है इसको यहीं छुपा लो ,बिखर गया तो ज्यादा
टीस देगा । इसी विषय पर
आज सहज सहित्य में डॉ हरदीप सन्धु के हाइकु का गुलदस्ता ,आप सबकी भेंट]
1
हाथों से मिटी
खुशियों की लकीरें
बिखरा दर्द ।
2
मेरी तन्हाई
मेरे साथ चलती
ढूँढ़े साहिल ।
3
छोड़ वजूद
रेत पर लकीरें
लौटी लहरें ।
4
शान्त सागर
बेचैन-
सी लहरें
जख़्मी साहिल ।
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