प्रीति अग्रवाल
देखो, तुम आया न करो
आओ, तो जाया न करो...
इंद्रधनुष के सात रंग में
मन मेरा रंग जाता है,
फिर अश्रुधार में बारी- बारी
एक-एककर, घुल जाता है...
देखो, तुम आया न करो,
आओ, तो जाया न करो!
आओगे तुम, हर धड़कन में
सुर और ताल समाता है,
जाते कदमों की आहट से
मन बैठा- सा जाता है...
देखो, तुम आया न करो,
आओ, तो जाया न करो!
चुन-चुन ख्वाबों की कलियाँ
दामन मेरा भर जाता है,
रीता दामन फिर रह-रहकर
मुझको बहुत सताता है...
देखो, तुम आया न करो,
आओ, तो जाया न करो!
हरसिंगार, गेंदा, गुलाब
जब सारा तन महकाता है
तुम बिन महके, जो तन मुझको
देर-तलक तड़पाता है...
देखो, तुम आया न करो,
आओ, तो जाया न करो!
साथ तुम्हारे दूर देस के
परिस्तान हो आती हूँ,
धरती पर वापस आने से
मगर बहुत सकुचाती हूँ...
देखो, तुम आया न करो,
आओ, तो जाया न करो!
ख्वाब अधूरे थे, जो अब तक
सब पूरे हो जाते है
साथ हमारा रहे सदा तक
बस वो ही रह जाता है....
देखो, तुम आया न करो,
आओ, तो जाया न करो!
आओगे तुम मैं यह जानूँ
और जाना भी है तुमको,
बेबस मन की सुन लो, किंतु
उसपर न तुम ध्यान धरो,
आते रहना प्रियतम यूँ ही,
तुम यूँ ही, आ जाया करो....
आते रहना प्रियतम यूँ ही,
तुम यूँ ही, आ जाया करो!
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