पथ के साथी

Sunday, July 9, 2023

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 1-नयनों में पावस।

             


प्रणति ठाकुर

तुझको याद करूँ या न पर

मन में तू  बरबस  आया  है

नयनों  में  पावस  छाया  है...

 

भाव हेतु तपते मरुथल पर,

अश्रु-बिन्दु स्वयं मचल-मचलकर,

गिरकर जब विलीन होते हैं,

हृदय -पटल पर घनीभूत हो,

प्यार तेरा घन बन आया है

नयनों में पावस छाया है....

 

भावों के इस आप्लावन में,

अश्रु -बिन्दु के इस छम-छम में,

खुशियों की कुछ लघु नौकाएँ,

मन-तड़ाग में अभिभूत हैं

बचपन का मधुमय साया है

नयनों में पावस छाया है.....

 

प्रतिपल बरस रहे हैं आँसू ,

तुम बिन तरस रहे हैं आँसू,

चाहत की सुन्दर शुचि कलियाँ

खिलने को प्रतिपल व्याकुल हैं,

यह पग -पग सावन लाया है

नयनों में पावस छाया है......

 

तेरे स्नेह की स्वाति -सुधा जब

मन की खाली- सी सीपी में

अमृत की बूँदें बन झरतीं,

दृग-मुक्ता लड़ियों में गुँथकर ,

चन्द्रहार बन मुस्काया है

नयनों में पावस छाया है....

 

यादों की हर दूब हरित हो,

प्रेम-रश्मि से स्वर्ण - खचित हो,

अंतस् के पग को सहलातीं ,

नेह-तुहिन का लेप लगातीं ,

ये मधु क्षण हिय को भाया है

नयनों में पावस छाया है.....

 

स्वप्नलोक की शहनाई है,

इन्द्रायुध की परछाई है,

मन की डोली में बैठा तन 

प्रिय-नगर को हो आया है,

चहुँ दिश हृदय -जनित माया है

नयनों में पावस छाया है

नयनों में पावस छाया है......

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