1-नयनों में पावस।
प्रणति ठाकुर
तुझको याद करूँ या न पर
मन में तू बरबस आया है
नयनों में पावस छाया है...
भाव हेतु तपते मरुथल पर,
अश्रु-बिन्दु स्वयं मचल-मचलकर,
गिरकर जब विलीन होते हैं,
हृदय -पटल पर घनीभूत हो,
प्यार तेरा घन बन आया है
नयनों में पावस छाया है....
भावों के इस आप्लावन में,
अश्रु -बिन्दु के इस छम-छम में,
खुशियों की कुछ लघु नौकाएँ,
मन-तड़ाग में अभिभूत हैं
बचपन का मधुमय साया है
नयनों में पावस छाया है.....
प्रतिपल बरस रहे हैं आँसू ,
तुम बिन तरस रहे हैं आँसू,
चाहत की सुन्दर शुचि कलियाँ
खिलने को प्रतिपल व्याकुल हैं,
यह पग -पग सावन लाया है
नयनों में पावस छाया है......
तेरे स्नेह की स्वाति -सुधा जब
मन की खाली- सी सीपी में
अमृत की बूँदें बन झरतीं,
दृग-मुक्ता लड़ियों में गुँथकर ,
चन्द्रहार बन मुस्काया है
नयनों में पावस छाया है....
यादों की हर दूब हरित हो,
प्रेम-रश्मि से स्वर्ण - खचित हो,
अंतस् के पग को सहलातीं ,
नेह-तुहिन का लेप लगातीं ,
ये मधु क्षण हिय को भाया है
नयनों में पावस छाया है.....
स्वप्नलोक की शहनाई है,
इन्द्रायुध की परछाई है,
मन की डोली में बैठा तन
प्रिय-नगर को हो आया है,
चहुँ दिश हृदय -जनित माया है
नयनों में पावस छाया है
नयनों में पावस छाया है......
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