थोड़ा सा नेह
कमला निखुर्पा
औ छलक उठा
मन दीपक।
दिप-दिप जल उठी
सोई थी जो बाती।
लगन की लौ
लहककर जल उठी
लगने लगी
हवा से होड़
जलने की
बुझने की।
हवा चलती रही
दिया जलता रहा
नन्ही एक हथेली
करती रही ओट
भरती रही नेह
मन दीपक में।
थोड़ा सा नेह
कमला निखुर्पा
औ छलक उठा
मन दीपक।
दिप-दिप जल उठी
सोई थी जो बाती।
लगन की लौ
लहककर जल उठी
लगने लगी
हवा से होड़
जलने की
बुझने की।
हवा चलती रही
दिया जलता रहा
नन्ही एक हथेली
करती रही ओट
भरती रही नेह
मन दीपक में।